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राजा भोज

राजा भोज को वन में विपत्ति पड़ी। भूजी मछली जल में गिरी, जैसी कहावत वाले भोज यही राजा भोज थे, जो परमार वंश के प्रमुख ६ शासकों में चौथे महान् यशस्वी राजा थे। परमार राजपूत 'पवार' नाम से भी विख्यात हैं। इस वंश के संस्थापक उपेन्द्र या कृष्णराज राष्ट्रकूटों के सामन्त थे। इसके बाद मुंज (९७३-९९५ ई०) प्रतिभाशाली सम्राट के बाद राजा भोज (१०१८ से १०६० ई०) एक जनप्रिय शासक थे। परमारवंश के सर्वश्रेष्ठ शासक राजा भोज थे। इन्होंने कल्याणी के चालुक्यों को हराया। इसके बाद इन्होंने कलचुरी राजा गांगेय देव को परास्त किया। इनका शासन उदारता और जनप्रियता के उच्चशिखर पर था। पर, चालुक्य राजा सोमेश्वर प्रथम आह्वमल्ल ने राजा भोज को हरा दिया और मालवा और इनकी राजधानी धार को लूटकर बर्बाद कर दिया। यही वे दिन थे, जो भारतीय लोककथाओं में राजा भोज के दुर्दिन रूप में प्रसिद्ध हैं।

दन्तकथाओं में प्रसिद्ध है कि राजा भोज ने पुनः शीघ्र ही अपना खोया हुआ राज-पाट वापस पा लिया। इतिहास का यह तथ्य है कि राजा भोज ने पुनः अपनी प्रतिष्ठा वापस पा लिया। इन्होंने भीम प्रथम की अनपस्थिति में अह्निलवाड़ को जमकर लूटा। इससे कुपित भीम प्रथम ने कल में अहिलवाड़ को जमकर लूटा। इससे कुपित भीम प्रथम ने कलचुरि राजा लक्ष्मीकर्ण की मदद से दुतरफा राजा भोज के राज्य पर भयानक हमला किया। युद्धकाल में ही भोज का निधन हो गया। मैरचुंग के अनुसवार राजाभोज ने ५५ वर्ष सात महीने तीन दिन तक शासन किया। राजाभोज विद्याप्रेमी और दानवीर थे। इनके रचित २८ ग्रंथ आज तक मिलते हैं। इनमें हैं - 'सरस्वती कण्ठाभरण', 'शृंगारप्रकाश', 'प्राकृत व्याकरण', 'पातंजलयोगसूत्रवृत्ति', 'चम्पूरामायण', 'कूर्मशतक', 'समरांगणसूत्रधार', 'शृंगारमंजरी', 'तत्वप्रकाश', 'भुक्तिकल्पतरु' 'राजमृगांक', 'भुजबल निबन्ध' 'शब्दानुशासन', नाममालिका' आदि। एक अभिलेख में राजाभोज को 'कविराज' कहा गया है।

'भोजशाला' नाम से अपनी राजधानी धार में राजाभोज ने एक संस्कृत विद्यालय की स्थापना की थी। अनेक कवि, साहित्यकार राजाभोज के दरबारी थे। ये शैव मतावलम्बी थे। उदयपुर अभिलेख के अनुसार इन्होंने अनेक विशाल मंदिर का निर्माण अपने राज्य में करवाया था। वर्तमान भोपाल के दक्षिण में भोजपुर' नाम का एक नगर राजा भोज ने बसाया। राजा भोज के निधन के बाद जयसिंह और उदय दित्य शासक हुए। उदय दित्य इस वंश के अंतिम शासक थे, जिनका शासन १०९४ तक था। अलाउद्दीन खिलजी ने.१३०४ में मालवा पर हमला कर उसे अपने राज्य में अन्तत: विलीन कर लिया। मांडू, उज्जैन, धार, चन्देरी खिलजी राज्य में लय कर गये।