म्यूनिस्पिल चुनाव
मेरे गुरुवर पंडितजी आज सवेरे ही पहुँच गये। मैं चाय पी रहा था, वह गंगास्नान के लिये जा रहे थे। मैंने यहाँ सुना कि घर पर नहाने का उतना महत्व भारतवर्ष में नहीं है, जितना गंगा में नहाने का। हमारे पंडितजी बतलाने लगे कि गंगा की बड़ी महत्ता है। उन्होंने बताया कि एक बूँद जिस वस्तु में पड़ जाये, वह कितनी भी अपवित्र हो, पवित्र हो जाती है और मरने के समय मुख में थोड़ी-सी डाल दी जाये तो मनुष्य सीधे स्वर्ग को जाता है और स्नान करने से सभी पाप कट जाते हैं। मैंने उनसे कहा कि एक बोतल मेरे लिये आप कृपया ला दीजिये मैं इंग्लैंण्ड भेज दूँ। अपने परिवार के सब लोगों को स्वर्ग भेज देने के लिये इतना पर्याप्त होगा। मैंने उनसे पूछा - 'बहुत-से हिन्दू मेरे यहाँ भोजन करने से इनकार करते हैं। यदि खाने पर गंगाजल छिड़क दूँ तब तो उन्हें खाने में कोई आपत्ति न होगी?'
मैं तो धार्मिक प्रकृति का आदमी ठहरा, किन्तु सेना में मार-काट में सदा रहने से अनेक पापों का भागी बनना पड़ा होगा। मैंने उनसे पूछा कि मैं एकाध दिन स्नान कर लूँ तो अनेक पापों से मुक्त हो जाऊँगा? क्या आप कोई व्यवस्था कर सकते हैं कि मैं कभी-कभी वहाँ स्नान कर लूँ? नहीं तो चार घड़े यहीं भिजवाने का प्रबन्ध करा दीजिये। उन्होंने कहा कि मैं जो पुस्तकों तथा शास्त्रों में लिखा है, उसी के अनुसार कहता हूँ। मैंने कहा कि आप पुस्तकों पर विश्वास करते हैं, मैं आप पर विश्वास करता हूँ। मैं एक बोतल जल अपने आप सभी रखूँगा। एक बूँद प्रत्येक दिन चाय में मिला लूँगा। जाने-अनजाने में जो दोष हो जाये वह तो न लगेगा। मुझे आपके कथन पर पूर्ण विश्वास है।
उन्होंने यह भी कहा कि चलिये आप गंगा की सैर करा लायें। मुझे कोई काम नहीं था। मैं उनके साथ कार पर गंगा के तट पर चला गया। वहाँ से लौटने में ग्यारह बज गये। राह में एक स्थान पर इतनी भीड़ थी कि कार रोक लेनी पड़ी। बड़ा शोर था, पास ही खेमे लगे हुए थे। मैंने पूछा कि पंडितजी, आज कोई पर्व त्योहार है। पंडितजी से पता चला, आज कानपुर म्यूनिस्पिैलिटी का चुनाव है। इंग्लैंड में मैंने चुनाव देखे थे। बड़े-बड़े भाषण होते थे, जुलूस निकलते थे, झण्डे निकलते थे। यहाँ भी देखूँ कि भारतीय ढंग कैसा होता है।
मैं गाड़ी पर से उतर पड़ा। पंडितजी से अनेक प्रश्न करता हुआ भीड़ में घुसा। अनेक लोग झण्डे लिये यहाँ भी घूम रहे थे। कुछ लोग बीच-बीच में चिल्लाते भी थे। एक झण्डे पर गाय का चित्र बना था। इससे यह जान पड़ा कि यह दल हिन्दुओं का है।
चिल्लाहट, झण्डा, भीड़, जुलूस तो यहाँ वालों ने, जान पड़ता है, हमारे यहाँ से सीखा है; किन्तु भारतवासियों में एक गुण यह बहुत बड़ा है कि जो कुछ सीखते हैं उसमें उन्नति भी करते हैं। यहाँ मैंने देखा कि खेमों में पान की दुकानें है और वोट देनेवालों के लिये जलपान की व्यवस्था भी है। वोट देनेवालों की बड़ी खातिरदारी होती है। यह खातिरदारी यहाँ तक बढ़ती जाती है कि वोटर बेचारा घबड़ा जाता है।
मेरे सामने एक वोटर आया। गाय का झण्डा लिये एक व्यक्ति आया और उसके साथ कोई एक और व्यक्ति आया। उसने कहा - 'देखिये, यदि मैं सदस्य चुन लिया गया तो नगर में हर मुहल्ले में गोशाला बनवा दूँगा। नगर की जितनी गोमांस बेचनेवाली दुकानें हैं सब एक दिन में बन्द करा दूँगा।' इसी बीच एक व्यक्ति ऐसा आया जिसके साथ चार-पाँच आदमी थे। प्रत्येक के हाथ में एक-एक झण्डा था। हर एक झण्डे पर बड़ी-बड़ी कैंचियां बनी हुई थीं। उसके नेता ने इस वोटर को समझाना आरम्भ किया - 'हम लोग समाजवादी दल के हैं, हम लोग सबको समान बनाना चाहते हैं। यह कैंची इसी का प्रतीक है। जो छोटा है उसे बड़ा बनाने में कठिनाई है, असुविधा है, परिश्रम है, समय की आवश्यकता है। इसलिये हम लोग बड़ों को ही छोटों के समान बनाने की चेष्टा करेंगे। यदि हमें आप म्यूनिसपैलिटी में भेज देंगे तो नगर की सब सड़कें बराबर करा देंगे। नगर के घरों की ऊँचाई एक-सी करा दी जायेगी। कोई कारण नहीं कि घी पर अधिक चुंगी लगे और चोकर पर कम। सब बराबर कर दी जायेगी। किसी के घर में एक पानी का नल, किसी के घर में चार, यह असमानता नहीं हो सकेगी। सबके यहाँ एक-एक नल कर दिया जायेगा। क्यों बेचारा किसी का घर एक ही मंजिल का और किसी का चार मंजिल का रहे? वह सब गिरवा दिये जायेंगे और सबका घर एक-एक मरातिब का कर दिया जायेगा।
'देखिये क्या अन्याय होता है कि सिनेमा में कहीं एक तमाशा, कहीं दूसरा खेल दिखाया जाता है। इससे कोई कुछ खेल देखता है, कोई कुछ। सब सिनेमाओं में एक ही खेल दिखाने की व्यवस्था की जायेगी। जिससे नगर-भर को इस विषय का ज्ञान एक-सा हो।
'बाजारों में एक दुकान पर एक ही वस्तु बिकेगी। इसका क्या अर्थ कि एक ही व्यक्ति चावल भी बेचे और दाल भी बेचे तथा गेहूँ भी बेचे। हम अपने नगर को आदर्श नगर बनवायेंगे और समानता में संसार-भर को शिक्षा देंगे।' यह व्याख्यान सुनने पर वोटर महोदय इसी ओर झुकने लगे। हिन्दुस्तान भावी सदस्य उसे अपनी ओर खींचने लगा। कुछ और लोग आये। इधर से भी उधर से भी और उसे दोनों ओर खींचने लगे लोग। वोटिंग घर के द्वार के निकट जाते-जाते उसके कुरते की एक बाँह समाजवादी नेता के हाथ में थी और एक बाँह हिन्दू नेता के। हाथ उसके कुरते से बली थे नहीं तो वह भी निकल आते। भीतर जाकर उसने किसे वोट दिया यह मुझे पता नहीं। किन्तु उसके लौटने के पहले ही बाहर दोनों दलों में शक्ति की परीक्षा का आयोजन हो गया। झण्डे का डंडा, हिन्दुस्तानी-अंग्रेजी जूते, चप्पल, सभी सजीव हो गये और उनमें गति आ गयी। परन्तु पन्द्रह मिनट के पश्चात् ही शान्ति स्थापित हो गयी। पुलिस के कुछ कान्स्टेबल वहाँ पहुँच गये। केवल दो व्यक्ति अस्पताल पहुँचाये गये। यहाँ की पुलिस भी बड़ी बुद्धिमती होती है। आते ही इसने झगड़ा शान्त कर दिया। क्या इसे युद्धस्थल में नहीं भेजा जा सकता? जब किसी भाँति लड़ाई बन्द न होती तो तब भारत की पुलिस पहुँचकर बन्द कर सकती है।
चुनाव का कार्य पूर्ववत् चलने लगा और वही-वही बातें फिर-फिर देखने में आयीं। कोई नई बात न थी। इसलिये मैं बैरक लौट जाने के लिये गाड़ी पर बैठ गया। पंडितजी से मैंने पूछा -'क्या मुसलमानों ने बायकाट किया है? कोई मुसलमान चुनाव में दिखायी नहीं दिया।' पंडितजी ने बताया कि मुसलमानों का चुनाव अलग होता है। पंडितजी ने यह भी बताया कि सरकार ने ऐसा नियम बनाया है कि दोनों के चुनाव अलग-अलग हों। जैसे मूली और दही एक साथ नहीं खाया जा सकता, मांस और दूध एक साथ नहीं खा सकते, शहद और घी का संयोग विष है, श्रृंगार और रौद्ररस एक साथ ठीक नहीं हैं, उसी भाँति मुसलमान और हिन्दू एक साथ वर्जित हैं। मैंने - 'पूछा इसका कोई कारण तो होना चाहिये?'