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समकालीन राजकीय परिस्थिति 9

१६. कंबोजा (काम्बोज)

यांचें राज्य वायव्य दिशेला असून त्यांची राजधानी द्वारका होती, असें प्रो. र्‍हिस् डेव्हिड्स् यांचें मत आहे.* परंतु मज्झिमनिकायांतील अस्सलायनसुत्तांत 'योनकंबोजेसु' असा त्या देशाचा यवनांबरोबर उल्लेख केला असल्यामुळे हा देश गांधारांच्याही पलीकडे होता असें दिसतें. त्याच सुत्तांत यवनकाम्बोज देशांत आर्य आणि दास अशा दोनच जाती आहेत व कधी कधी आर्याचा दास आणि दासाचा आर्य होत असतो असेंही म्हटलें आहे. गांधारांच्या देशांत वर्णाश्रमधर्म दृढमूल झाला असल्याचें कांहीं जातककथांवरून स्पष्ट होतें. खुद्द तक्षशिलेंत बहुतेक गुरु ब्राह्मणजातीचे असत. पण काम्बोजांत चातुर्वर्ण्याचा प्रवेश झाला नव्हता. तेव्हा तो देश गांधारांच्या पलीकडे होता असें म्हणावें लागतें.
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* Buddhist India, p. 28.
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या देशांतील लोक जंगली घोडे पकडण्यांत पटाईत होते असें कुणालजातकाच्या अट्ठकथेवरून दिसून येतें. घोडे पकडणारे लोक जंगली घोडे ज्या ठिकाणीं पाणी पिण्यास येत त्या पाण्यावरच्या शेवाळाला आणि जवळच्या गवताला मध फाशीत. घोडे तें गवत खात खात त्या लोकांनी तयार केलेल्या एका मोठ्या कुंपणांत शिरत. ते आंत शिरल्याबरोबर घोडे पकडणारे कुंपणाचा दरवाजा बंद करीत आणि त्या घोड्यांना हळूहळू आपल्या कह्यांत आणीत असत. (आजकाल अशाच कांही उपायांनी म्हैसूरांत हत्ती पकडत असतात हें सर्वश्रुत आहेच.) जंगली घोड्यांना लगामांत आणून त्यांना हे लोक काम्बोजांतील व्यापार्‍यांना विकत असावेत. व्यापारी लोक घोड्यांना तेथून मध्यदेशांत बनारस वगैरे ठिकाणीं आणून विकीत.*
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* उदाहरणार्थ तण्डुलनालिजातक पाहा.
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काम्बोज देशांतील बहुजन किडे, पतंग वगैरे प्राण्यांना मारल्यानेच आत्मशुद्धि होते, असें समजत.

कीटा पतंगा उरगा च भेका
हन्त्वा किमिं सुज्झति मक्खिका च ।
एते हि धम्मा अनरियरूपा
कम्बोजकानं वितथा बहुन्नं ॥*
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* भूरिदत्तजातक श्लोक ९०३.
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'किडे, पतंग, सर्प, बेडून, कृमि आणि माशा मारल्याने मनुष्यप्राणी शुद्ध होतो, असा अनार्य आणि आतथ्य धर्म काम्बोजांतील बहुजन मानतात.'

यावरून हे लोक, सध्या जसे सरहद्दीवरचे लोक आहेत, तसेच मागासलेले होते असें दिसतें.

मनोरथपूरणी अट्ठकथेंत महाकप्पिनाची गोष्ट आली आहे. तो सरहद्दीवरील कुक्कुटवती नांवाच्या राजधानींत राज्य करीत होता, आणि पुढे बुद्धाचे गुण ऐकून मध्यदेशांत आला. चन्द्रभागा नदीच्या काठीं त्याची आणि भगवान बुद्धाची गाठ पडली. तेथे भगवंताने कप्पिनाला त्याच्या अमात्यांसह भिक्षुसंघांत घेतलें. इत्यादि.*
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* बौद्धसंघाचा परिचय पृ. २०३ पहा.
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महाकप्पिन राजा होता व तो कुक्कुटवतींत राज्य करीत होता याला आधार संयुत्तनिकायाच्या अट्ठकथेंत सापडतो. परंतु ही कुक्कुटवती राजधानी काम्बोजांत होती, किंवा त्याच्या जवळच्या कुठल्या तरी दुसर्‍या डोंगराळ संस्थानांत होती, हें कांहीच समजत नाही. एवढें खरें की, बुद्धाच्या हयातींतच त्याची कीर्ति आणि प्रभाव या सरहद्दीवरच्या रानटी लोकांत पसरला होता. याला एक आजकालचें उदाहरण देतां येण्यासारखें आहें. पंजाबच्या जातिनिविष्ट लोकांत जेवढें गांधीजींचें वजन आहे, त्याच्यापेक्षा किती तरी पटीने जास्त सरहद्दीवरच्या पठाणांत दिसून येतें. असाच कांहीसा प्रकार बुद्धाच्या वेळीं घडून आला असल्यास त्यांत आश्चर्य मानण्यासारखें कांही नाही.

भगवान बुद्ध (पूर्वार्ध)

धर्मानंद कोसंबी
Chapters
भगवान बुद्ध (पूर्वार्ध) 1 भगवान बुद्ध (पूर्वार्ध) 2 भगवान बुद्ध (पूर्वार्ध) 3 भगवान बुद्ध (पूर्वार्ध) 4 भगवान बुद्ध (पूर्वार्ध) 5 भगवान बुद्ध (पूर्वार्ध) 6 भगवान बुद्ध (पूर्वार्ध) 7 भगवान बुद्ध (पूर्वार्ध) 8 भगवान बुद्ध (पूर्वार्ध) 9 भगवान बुद्ध (पूर्वार्ध) 10 भगवान बुद्ध (पूर्वार्ध) 11 आर्यांचा जय 1 आर्यांचा जय 2 आर्यांचा जय 3 आर्यांचा जय 4 आर्यांचा जय 5 समकालीन राजकीय परिस्थिति 1 समकालीन राजकीय परिस्थिति 2 समकालीन राजकीय परिस्थिति 3 समकालीन राजकीय परिस्थिति 4 समकालीन राजकीय परिस्थिति 5 समकालीन राजकीय परिस्थिति 6 समकालीन राजकीय परिस्थिति 7 समकालीन राजकीय परिस्थिति 8 समकालीन राजकीय परिस्थिति 9 समकालीन राजकीय परिस्थिति 10 समकालीन राजकीय परिस्थिति 11 समकालीन राजकीय परिस्थिति 12 समकालीन राजकीय परिस्थिति 13 समकालीन धर्मिक परिस्थिति 1 समकालीन धर्मिक परिस्थिति 2 समकालीन धर्मिक परिस्थिति 3 समकालीन धर्मिक परिस्थिति 4 समकालीन धर्मिक परिस्थिति 5 समकालीन धर्मिक परिस्थिति 6 समकालीन धर्मिक परिस्थिति 7 समकालीन धर्मिक परिस्थिति 8 समकालीन धर्मिक परिस्थिति 9 समकालीन धर्मिक परिस्थिति 10 समकालीन धर्मिक परिस्थिति 11 समकालीन धर्मिक परिस्थिति 12 समकालीन धर्मिक परिस्थिति 13 समकालीन धर्मिक परिस्थिति 14 गोतम बोधिसत्त्व 1 गोतम बोधिसत्त्व 2 गोतम बोधिसत्त्व 3 गोतम बोधिसत्त्व 4 गोतम बोधिसत्त्व 5 गोतम बोधिसत्त्व 6 गोतम बोधिसत्त्व 7 गोतम बोधिसत्त्व 8 गोतम बोधिसत्त्व 9 गोतम बोधिसत्त्व 10 गोतम बोधिसत्त्व 11 गोतम बोधिसत्त्व 12 गोतम बोधिसत्त्व 13 गोतम बोधिसत्त्व 14 तपश्चर्या व तत्वबोध 1 तपश्चर्या व तत्वबोध 2 तपश्चर्या व तत्वबोध 3 तपश्चर्या व तत्वबोध 4 तपश्चर्या व तत्वबोध 5 तपश्चर्या व तत्वबोध 6 तपश्चर्या व तत्वबोध 7 तपश्चर्या व तत्वबोध 8 तपश्चर्या व तत्वबोध 9 तपश्चर्या व तत्वबोध 10 तपश्चर्या व तत्वबोध 11 तपश्चर्या व तत्वबोध 12 तपश्चर्या व तत्वबोध 13 तपश्चर्या व तत्वबोध 14 तपश्चर्या व तत्वबोध 15 श्रावकसंघ 1 श्रावकसंघ 2 श्रावकसंघ 3 श्रावकसंघ 4 श्रावकसंघ 5 श्रावकसंघ 6 श्रावकसंघ 7 श्रावकसंघ 8 श्रावकसंघ 9 श्रावकसंघ 10 श्रावकसंघ 11 श्रावकसंघ 12 श्रावकसंघ 13 श्रावकसंघ 14 श्रावकसंघ 15 श्रावकसंघ 16