घर हमारा जो न रोते भी तो वीरां[1] होता बहर[2] गर बहर न होता तो बयाबां[3] होता तंगी-ए-दिल का गिला क्या ये वो काफ़िर दिल है कि अगर तंग न होता, तो परेशां होता बादे-यक उम्र-वराअ[4] बार[5] तो देता बारे[6] काश, रिज़्वां[7] ही दर-ए-यार का दरबां होता