हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
हर एक बात पे कहते हो तुम कि 'तू क्या है'
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू[1] क्या है
न शो'ले[2] में ये करिश्मा न बर्क़[3] में ये अदा
कोई बताओ कि वो शोखे-तुंद-ख़ू[4] क्या है
ये रश्क है कि वो होता है हमसुख़न[5] तुमसे
वर्ना ख़ौफ़-ए-बद-आमोज़िए-अ़दू[6] क्या है
चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन[7]
हमारी जैब को अब हाजत-ए-रफ़ू[8] क्या है
जला है जिस्म जहाँ, दिल भी जल गया होगा
कुरेदते हो जो अब राख, जुस्तजू[9] क्या है
रगों में दौड़ने-फिरने के हम नहीं क़ायल[10]
जब आँख ही से न टपका, तो फिर लहू क्या है
वो चीज़ जिसके लिये हमको हो बहिश्त[11] अज़ीज़[12]
सिवाए वादा-ए-गुल्फ़ाम-ए-मुश्कबू[13] क्या है
पियूँ शराब अगर ख़ुम[14] भी देख लूँ दो-चार
ये शीशा-ओ-क़दह-ओ-कूज़ा-ओ-सुबू[15] क्या है
रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार[16] और अगर हो भी
तो किस उमीद[17] पे कहिए कि आरज़ू क्या है
हुआ है शह का मुसाहिब[18], फिरे है इतराता
वगर्ना शहर में "ग़ालिब" की आबरू[19] क्या है
- ↑ बातचीत का तरीका
- ↑ ज्वाला
- ↑ बिज़ली
- ↑ शरारती-अकड़ वाला
- ↑ अकसर बातें करना
- ↑ दुश्मन के सिखाने-पढ़ाने का डर
- ↑ चोला
- ↑ रफ़ू करने की जरूरत
- ↑ तलाश
- ↑ प्रभावित होना
- ↑ स्वर्ग
- ↑ प्रिय
- ↑ गुलाबी कस्तूरी-सुगंधित शराब
- ↑ शराब के ढ़ोल
- ↑ बोतल, प्याला, मधु-पात्र और मधु-कलश
- ↑ बोलने की ताकत
- ↑ उम्मीद
- ↑ ऱाजा का दरबारी
- ↑ प्रतिष्ठा