रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गये
रोने से और इश्क़ में बे-बाक[1] हो गए
धोए गए हम ऐसे कि बस पाक[2] हो गए
सर्फ़-ए-बहा-ए-मै[3] हुए आलात-ए-मैकशी[4]
थे ये ही दो हिसाब, सो यों पाक[5] हो गए
रुसवा-ए-दहर[6] गो हुए आवारगी से तुम
बारे[7] तबीअ़तों[8] के तो चालाक हो गए
कहता है कौन नाला-ए-बुलबुल को बेअसर
पर्दे में गुल के लाख जिगर चाक हो गए
पूछे है क्या वुजूद-ओ-अ़दम[9] अहल-ए-शौक़[10] का
आप अपनी आग से ख़स-ओ-ख़ाशाक[11] हो गए
करने गये थे उस से तग़ाफ़ुल[12] का हम गिला
की एक ही निगाह, कि बस ख़ाक हो गए
इस रंग से उठाई कल उस ने "असद" की न'श[13]
दुश्मन भी जिस को देख के ग़मनाक हो गए
शब्दार्थ: