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चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 1

अब हम अपने पाठकों का ध्यान जमानिया के तिलिस्म की तरफ फेरते हैं क्योंकि कुंअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह को वहां छोड़े बहुत दिन हो गये और अब बीच में उनका हाल लिखे बिना किस्से का सिलसिला ठीक नहीं होता।

हम लिख आये हैं कि कुंअर इन्द्रजीतसिंह ने तिलिस्मी किताब को पढ़कर समझने का भेद आनन्दसिंह को बताया और इतने ही में मन्दिर के पीछे की तरफ से चिल्लाने की आवाज आई। दोनों भाइयों का ध्यान एकदम उस तरफ चला गया और फिर यह आवाज सुनाई पड़ी, “अच्छा-अच्छा, तू मेरा सिर काट ले, मैं भी यही चाहती हूं कि अपनी जिन्दगी में इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह को दुःखी न देखूं। हाय इन्द्रजीतसिंह! अफसोस, इस समय तुम्हें मेरी खबर कुछ भी न होगी!” इस आवाज को सुनकर इन्द्रजीतसिंह बेचैन और बेताब हो गये और आनन्दसिंह से यह कहते हुए कि, “कमलिनी की आवाज मालूम पड़ती है” मन्दिर के पीछे की तरफ लपके। आनन्दसिंह भी उनके पीछे-पीछे चले गये।

जब कुंअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह मन्दिर के पीछे की तरफ पहुंचे तो एक विचित्र वेशधारी मनुष्य पर उनकी निगाह पड़ी। उस आदमी की उम्र अस्सी वर्ष से कम न होगी। उसके सिर, मूंछ, दाढ़ी और भौं इत्यादि के तमाम बाल बर्फ की तरह सफेद हो रहे थे मगर गरदन और कमर पर बुढ़ापे ने अपना दखल जमाने से परहेज कर रक्खा था, अर्थात् न तो उसकी गर्दन हिलती थी और न कमर झुकी हुई थी, उसके चेहरे पर झुर्रियां (बहुत कम) पड़ी हुई थीं मगर फिर भी उसका गोरा चेहरा रौनकदार और रोबीला दिखाई पड़ता था और दोनों तरफ के गालों पर अब भी सुर्खी मौजूद थी। एक नहीं बल्कि हर एक अंगों की किसी न किसी हालत से वह अस्सी वर्ष का बुड्ढा जान पड़ता था। परन्तु कमजोरी, पस्तहिम्मती, बुजदिली और आलस्य इत्यादि के घावों से उसका शरीर बचा हुआ था।

उसकी पोशाक राजों-महाराजों की पोशाकों की तरफ बेशकीमत तो न थी मगर इस योग्य भी न थी कि उससे गरीबी और कमलियाकत जाहिर होती। रेशमी तथा मोटे कपड़े की पोशाक हर जगह से चुस्त और फौजी अफसरों के ढंग की मगर सादी थी। कमर में एक भुजाली लगी हुई थी और बाएं हाथ में सोने की एक बड़ी-सी डलिया या चंगेर लटकाए हुए था। जिस समय वह कुंअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह की तरफ देखकर हंसा उस समय यह भी मालूम हो गया कि उसके मुंह में जवानों की तरह कुल दांत अभी तक मौजूद हैं और मोती की तरह चमक रहे हैं।

कुंअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह को आशा थी कि वे इस जगह कमलिनी को नहीं तो किसी न किसी औरत को अवश्य देखेंगे मगर आशा के विपरीत एक ऐसे आदमी को देख उन्हें बड़ा ही ताज्जुब हुआ। इन्द्रजीतसिंह ने वह तिलिस्मी खंजर जो मन्दिर के नीचे वाले तहखाने में पाया था आनन्दसिंह के हाथों में दे दिया और आगे बढ़कर उस आदमी से पूछा, “यहां से एक औरत के चिल्लाने की आवाज आई थी, वह कहां है?'

बुड्ढा - (इधर-उधर देखके) यहां तो कोई औरत नहीं है।

इन्द्र - अभी-अभी हम दोनों ने उसकी आवाज सुनी थी।

बुड्ढा - बेशक सुनी होगी मगर मैं ठीक कहता हूं कि यहां पर कोई नहीं है।

इन्द्र - तो फिर वह आवाज किसकी थी?

बुड्ढा - वह मेरी ही आवाज थी।

आनन्द - (सिर हिलाकर) कदापि नहीं।

इन्द्र - मुझे इस बात का विश्वास नहीं हो सकता। आपकी आवाज वैसी नहीं है जैसी वह आवाज थी।

बुड्ढा - जो मैं कहता हूं उसका आप विश्वास करें या यह बतावें कि आपको मेरी बात का विश्वास क्योंकर होगा क्या मैं उसी तरह से बोलूं?

इन्द्र - हां यदि ऐसा हो तो हम लोग आपकी बात मान सकते हैं!

बुड्ढा - (उसी तरह से और वे ही शब्द अर्थात् - “अच्छा-अच्छा, तू मेरा सिर काट ले” - इत्यादि बोलकर) देखिए वे ही शब्द और उसी ढंग की आवाज है या नहीं?

आनन्द - (ताज्जुब से) बेशक वही शब्द और ठीक वैसी ही आवाज है।

इन्द्र - मगर इस ढंग से बोलने की आपको क्या आवश्यकता थी?

बुड्ढा - मैं इस तिलिस्म में कल से चारों तरफ घूम-घूमकर आपको खोज रहा हूं। सैकड़ों आवाजें दीं और बहुत उद्योग किया मगर आप लोगों से मुलाकात न हुई। तब मैंने सोचा कदाचित आप लोगों ने यह सोच लिया हो कि इस तिलिस्म के कारखाने में किसी की आवाज का उत्तर देना उचित नहीं और इसी से आप मेरी आवाज पर ध्यान नहीं देते। आखिर मैंने यह तर्कीब निकाली और इस ढंग से बोला जिसमें सुनने के साथ ही आप बेताब हो जायें और स्वयं ढूंढ़कर मुझसे मिलें और आखिर जो कुछ मैंने सोचा था वही हुआ।

इन्द्र - आप कौन हैं और मुझे क्यों बुला रहे थे?

आनन्द - और इस तिलिस्म के अन्दर आप कैसे आए?

बुड्ढा - मैं एक मामूली आदमी हूं और आपका अदना गुलाम हूं, इसी तिलिस्म में रहता हूं और यही तिलिस्म मेरा घर है। आप लोग इस तिलिस्म में आए हैं तो मेरे घर में आए हैं। अतएव आप लोगों की मेहमानी और खातिरदारी करना मेरा धर्म है इसलिए मैं आप लोगों को ढूंढ़ रहा था।

इन्द्र - अगर आप इसी तिलिस्म में रहते हैं और यह तिलिस्म आपका घर है तो हम लोगों को आप दोस्ती की निगाह से नहीं देख सकते क्योंकि हम लोग आपका घर अर्थात् यह तिलिस्म तोड़ने के लिए यहां आए हैं, और कोई आदमी किसी ऐसे की खातिर नहीं कर सकता जो उसका मकान तोड़ने आया हो, तब हम क्योंकर विश्वास कर सकते हैं कि आप हमें अच्छी निगाह से देखते होंगे या हमारे साथ दगा या फरेब न करेंगे?

बुड्ढा - आपका खयाल बहुत ठीक है, ऐसे समय पर इन सब बातों को सोचना और विचार करना बुद्धिमानी का काम है, परन्तु इस बात का आप दोनों भाइयों को विश्वास करना ही होगा कि मैं आपका दोस्त हूं। भला सोचिए तो सही कि मैं दुश्मनी करके आपका क्या बिगाड़ कर सकता हूं। आपकी मेहरबानी से अवश्य फायदा उठा सकता हूं...

इन्द्र - हमारी मेहरबानी से आपका क्या फायदा होगा और आप इस तिलिस्म के अन्दर हमारी क्या खातिर करेंगे इसके अतिरिक्त यह भी बतलाइए कि क्या सबूत पाकर हम लोग आपको अपना दोस्त समझ लेंगे और आपकी बात पर विश्वास कर लेंगे

बुड्ढा - आपकी मेहरबानी से मुझे बहुत कुछ फायदा हो सकता है। यदि आप चाहेंगे तो मेरे घर को अर्थात् इस तिलिस्म को बिल्कुल चौपट न करेंगे, मेरे कहने का मतलब यह नहीं है कि आप इस तिलिस्म को न तोड़ें और उससे फायदा न उठाएं, बल्कि मैं यह कहता हूं कि इस तिलिस्म को उतना ही तोड़िए जितने से आपको गहरा फायदा पहुंचे और कम फायदे के लिए व्यर्थ उन मजेदार चीजों को चौपट न कीजिए जिनके बनाने में बड़े-बड़े बुद्धिमानों ने वर्षों मेहनत की और जिसका तमाशा देखकर बड़े - बड़े होशियारों की अक्ल भी चकरा सकती है। अगर इसका थोड़ा-सा हिस्सा आप छोड़ देंगे तो मेरा खेल-तमाशा बना रहेगा और इसके साथ ही साथ आपके दोस्त गोपालसिंह की इज्जत और नामबरी में भी फर्क न पड़ेगा और वह तिलिस्म के राजा कहलाने लायक बने रहेंगे। मैं इस तिलिस्म में आपकी खातिरदारी अच्छी तरह कर सकता हूं तथा ऐसे-ऐसे तमाशे दिखा सकता हूं जो आप तिलिस्म तोड़ने की ताकत रखने पर भी बिना मेरी मदद के नहीं देख सकते, हां उसका आनन्द लिए बिना उसको चौपट अवश्य कर सकते हैं। बाकी रही यह बात कि आप मुझ पर भरोसा किस तरह कर सकते हैं, इसका जवाब देना अवश्य ही जरा कठिन है।

इन्द्र - (कुछ सोचकर) तुमसे और राजा गोपालसिंह ने जान-पहिचान है?

बुड्ढा - अच्छी तरह जान-पहिचान है बल्कि हम दोनों में मित्रता है।

इन्द्र - (सिर हिलाकर) यह बातें तो मेरे जी में नहीं अटतीं।

बुड्ढा - सो क्यों?

इन्द्र - इसलिए कि एक तो यह तिलिस्म तुम्हारा घर है, कहो हां।

बुड्ढा - जी हां।

इन्द्र - जब यह तिलिस्म तुम्हारा घर है तो यहां का एक-एक कोना तुम्हारा देखा हुआ होगा बल्कि आश्चर्य नहीं कि राजा गोपालसिंह की बनिस्बत इस तिलिस्म का तुमको ज्यादा मालूम हो।

बुड्ढा - जी हां, बेशक ऐसा ही है।

इन्द्र - (मुस्कुराकर) तिस पर राजा गोपालसिंह से और तुमसे मित्रता है।

बुड्ढा - अवश्य।

इन्द्र - तो तुमने इतने दिनों तक राजा गोपालसिंह को मायारानी के कैदखाने में क्यों सड़ने दिया इसके जवाब में तुम यह नहीं कह सकते कि मुझे गोपालसिंह के कैद होने का हाल मालूम न था या मैं उस सींखचे वाली कोठरी तक नहीं जा सकता था जिसमें वे कैद थे।

इन्द्रजीतसिंह के इस सवाल ने बुड्ढे को लाजवाब कर दिया और वह सिर नीचा करके कुछ सोचने लगा। कुंअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह ने समझ लिया कि यह झूठा है और हम लोगों को धोखा दिया चाहता है। बहुत थोड़ी देर तक सोचने के बाद बुड्ढे ने सिर उठाया और मुस्कुराकर कहा, “वास्तव में आप होशियार हैं, बातों की उलझन में भुलावा देकर मेरा हाल जानना चाहते हैं, मगर ऐसा नहीं हो सकता; हां जब आप तिलिस्म को तोड़ लेंगे तो मेरा परिचय भी आपको मिल जायगा, लेकिन यह बात झूठी नहीं हो सकती कि राजा गोपालसिंह मेरे दोस्त हैं और यह तिलिस्म मेरा घर है।”

इन्द्र - आप स्वयम् अपने मुंह से झूठे बन रहे हैं, इसमें मेरा क्या कसूर है। यदि गोपालसिंह आपके दोस्त हैं तो आप मेरी बात का पूरा-पूरा जवाब देकर मेरा दिल क्यों नहीं भर देते हैं

बुड्ढा - नहीं, आपकी इस बात का जवाब मैं नहीं दे सकता कि गोपालसिंह को मैंने मायारानी के कैदखाने से क्यों नहीं छुड़ाया।

इन्द्र - तो फिर मेरा दिल कैसे भरेगा और मैं कैसे आप पर विश्वास करूंगा?

बुड्ढा - इसके लिए मैं दूसरा उपाय कर सकता हूं।

इन्द्र - चाहे कोई उपाय कीजिए परन्तु इस बात का निश्चय अवश्य होना चाहिए कि यह तिलिस्म आपका घर है और गोपालसिंह आपके मित्र हैं।

बुड्ढा - आपको तो केवल इसी बात का विश्वास होना चाहिए कि मैं आपका दुश्मन नहीं हूं।

आनन्द - नहीं-नहीं, हम लोग और किसी की बात का सबूत नहीं चाहते, केवल वह दो बात आप साबित कर दें जो भाईजी चाहते हैं।

बुड्ढा - तो इस समय मेरा यहां आना व्यर्थ ही हुआ! (चंगेर की तरफ इशारा करके) देखिए आप लोगों के खाने के लिए मैं तरह-तरह की चीजें लेता आया था मगर अब लौटा ले जाना पड़ा क्योंकि जब आपको मुझ पर विश्वास ही नहीं है तो इन चीजों को कब स्वीकार करेंगे।

इन्द्र - बेशक मैं इन चीजों को स्वीकार नहीं कर सकता जब तक कि मुझे आपकी बातों पर विश्वास न हो जाय।

आनन्द - (मुस्कुराकर) क्या आपके लड़के-बाले भी इसी तिलिस्म में रहते हैं ये सब चीजें आपके घर की बनी हुई हैं या बाजार से लाए हैं?

बुड्ढा - जी मेरे लड़के-बाले नहीं हैं न दुनियादार ही हूं, यहां तक कि कोई नौकर भी मेरे पास नहीं है - ये चीजें तो बाजार से खरीद लाया हूं।

आनन्द - तो इससे यह भी जाना जाता है कि आप दिन-रात इस तिलिस्म में नहीं रहते, जब कभी खेल-तमाशा देखने की इच्छा होती होगी तो चले आते होंगे।

इन्द्र - खैर जो हो, हमें इन सब बातों से कोई मतलब नहीं, हमारे सामने जब ये अपने सच्चे होने का सबूत लाकर रक्खेंगे तब हम इनसे बातें करेंगे और इनके साथ चलकर इनका घर देखेंगे।

इस बात का जवाब उस बुड्ढे ने कुछ न दिया और सिर झुकाये वहां से चला गया। इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह भी यह देखने के लिए कि वह कहां जाता है और क्या करता है उसके पीछे चले। बुड्ढे ने घूमकर दोनों भाइयों को अपने पीछे-पीछे आते देखा मगर इस बात की उसने कुछ परवाह न की और बराबर चलता गया।

हम पहिले के किसी बयान में लिख आये हैं कि इस बाग में पश्चिम की तरफ की दीवार के पास एक कुआं था। वह बुड्ढा उस कुएं की तरफ चला गया और जब उसके पास पहुंचा तो बिना कुछ रुके एकदम उसके अन्दर कूद पड़ा। इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह भी उस कुएं के पास पहुंचे और झांककर देखने लगे मगर सिवाय अन्धकार के और कुछ भी दिखाई न दिया।

आनन्द - जब वह बुड्ढा बेधड़क इसके अन्दर कूद गया तो यह कुआं जरूर किसी तरफ निकल जाने का रास्ता होगा!

इन्द्र - मैं भी यही समझता हूं।

आनन्द - यदि कहिये तो मैं इसके अन्दर जाऊं?

इन्द्र - नहीं-नहीं, ऐसा करना बड़ी नादानी होगी, तुम इस तिलिस्म का हाल कुछ भी नहीं जानते, हां मैं इसके अन्दर बेखटके जा सकता हूं क्योंकि मैं तिलिस्मी किताब को पढ़ा चुका हूं और वह मुझे अच्छी तरह याद भी है, मगर मैं नहीं चाहता कि तुम्हें इस जगह अकेला छोड़कर जाऊं।

आनन्द - तो फिर अब क्या करना चाहिए?

इन्द्र - बस सबके पहिले तुम इस तिलिस्मी किताब को पढ़ जाओ और इस तरह याद कर जाओ कि पुनः इसके देखने की आवश्यकता न रहे फिर जो कुछ करना होगा किया जायेगा। इस समय इस बुड्ढे का पीछा करना हमें स्वीकार नहीं है। जहां तक मैं समझता हूं यह दगाबाज बुड्ढा खुद हम लोगों का पीछा करेगा और फिर हमारे पास आयेगा बल्कि ताज्जुब नहीं कि अबकी दफे कोई नया रंग लावे।

आनन्द - जैसी आज्ञा, अच्छा तो वह किताब मुझे दीजिये मैं पढ़ जाऊं।

दोनों भाई लौटकर फिर उसी मन्दिर के पास आये और आनन्दसिंह तिलिस्मी किताब को पढ़ने में लौलीन हुए।

दोनों भाई चार दिन तक उसी बाग में रहे, इस बीच में उन्होंने न तो कोई कार्रवाई की और न कोई तमाशा देखा, हां आनन्दसिंह ने उस किताब को अच्छी तरह पढ़ डाला और सब बातें दिल में बैठा लीं। वह खून में लिखी हुई तिलिस्मी किताब बहुत बड़ी न थी और उसके अन्त में यह बात लिखी हुई थी -

“निःसन्देह तिलिस्म खोलने वाले का जेहन तेज होगा। उसे चाहिए कि इस किताब को पढ़कर अच्छी तरह याद कर ले क्योंकि इसके पढ़ने से ही मालूम हो जायेगा कि यह तिलिस्म खोलने वाले के पास बची न रहेगी, किसी दूसरे काम में लग जायेगी, ऐसी अवस्था में अगर इसके अन्दर लिखी हुई कोई बात भूल जायगी तो तिलिस्म खोलने वाले की जान पर आ बनेगी। जो आदमी इस किताब को आदि से अन्त तक याद न कर सके वह तिलिस्म के काम में कदापि हाथ न लगावे नहीं तो धोखा खायेगा।”

चंद्रकांता संतति

देवकीनन्दन खत्री
Chapters
चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 15 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 16 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 17 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 15 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 15 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 8