चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 11
रात बहुत कम बाकी थी जब बेगम, नौरतन और जमालो की बेहोशी दूर हुई।
बेगम - (चारों तरफ देखकर) हैं, यहां तो बिल्कुल अन्धकार हो रहा है, जमालो, तू कहां है?
नौरतन - जमालो नीचे गई है।
बेगम - क्यों?
नौरतन - जब हम दोनों होश में आईं तो यहां बिल्कुल अंधकार देखकर घबराने लगीं। नीचे चौक में कुछ रोशनी मालूम होती थी, जमालो ने झांककर देखा तो यहां वाला शमादान चौक में बलता पाया, आहट लेने पर जब मालूम हुआ कि नीचे कोई भी नहीं है तो शमादान लेने के लिए नीचे गई है।
बेगम - हाय, यह क्या हुआ?
नौरतन - पहिले रोशनी आने दो तो कहूंगी, लो जमालो आ गई।
बेगम - क्यों बहिन जमालो, क्या नीचे बिल्कुल सन्नाटा है?
जमालो - (शमादान जमीन पर रखकर) हां बिल्कुल सन्नाटा है, तुम्हारे सब आदमी भी न मालूम कहां गायब हो गये।
बेगम - हाय-हाय, यहां तो दोनों आलमारियां टूटी पड़ी हैं! हैं-हैं, मालूम होता है कि कागज सभी जलाकर राख कर दिये गये! (एक आलमारी के पास जाकर और अच्छी तरह देखकर) बस सर्वनाश हो गया! ताज्जुब यह है कि उसने मुझे जीता क्यों छोड़ दिया!
दोनों आलमारियों और उनकी चीजों की खराबी देखकर बेगम की दशा पागलों जैसी हो गई। उसकी आंखों से आंसू जारी थे और वह घबड़ाकर चारों तरफ घूम रही थी। थोड़ी ही देर में सवेरा हो गया और तब वह मकान के नीचे आई। एक कोठरी के अन्दर से कई आदमियों के चिल्लाने की आवाज सुनाई पड़ी, आवाज से वह पहचान गई कि उसके सिपाही लोग उसमें बन्द हैं। जब जंजीर खोली तो वे सब बाहर निकले और घबड़ाहट के साथ चारों तरफ देखने लगे। बेगम के पास जाने के पहिले ही भूतनाथ ने इस आदमियों को तिलिस्मी खंजर की मदद से बेहोश करके इस कोठरी के अन्दर बन्द कर दिया था।
बेगम ने सभों से बेहोशी का सबब पूछा जिसके जवाब में उन्होंने कहा कि “एक आदमी ने आकर एक खंजर यकायक हम लोगों के बदन से लगाया, हम लोग कुछ भी न सोच सके कि वह पागल है या चोर, बस एकदम बेहोश हो गये और तनोबदन की सुध जाती रही। फिर क्या हुआ यह हम नहीं जानते, जब होश में आये तो अपने को कोठरी के अन्दर पाया।”
इसके बाद बेगम ने उन लोगों से कुछ भी न पूछा और नौरतन तथा जमालो को साथ लेकर ऊपर वाले खण्ड में चली गई जहां बलभद्रसिंह कैद था। जब बेगम ने उस कोठरी को खुला पाया और बलभद्रसिंह को उसमें न देखा तब और हताश हो गई और जमालो की तरफ देखकर बोली, “बहिन, तुमने सच कहा था कि राजा वीरेन्द्रसिंह के पक्षपातियों का मनोरमा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती! देखो भूतनाथ के पास वैसा ही तिलिस्मी खंजर मौजूद है और उस खंजर की बदौलत उसने जो काम किया उसे भी तुम देख चुकी हो! अगर मैं इसका बदला भूतनाथ से लिया भी चाहूं तो नहीं ले सकती क्योंकि अब न तो मेरे कब्जे में बलभद्रसिंह रहा और न वे सबूत रह गये जिनकी बदौलत मैं भूतनाथ को दबा सकती थी। हाय, एक दिन वह था कि मेरी सूरत देखकर भूतनाथ अधमुआ हो जाता था और एक आज का दिन है कि मैं भूतनाथ का कुछ भी नहीं कर सकती। न मालूम इस मकान का और मेरा पता उसे कैसे मालूम हुआ और इतना कर गुजरने पर भी उसने मेरी जान क्यों छोड़ दी निःसन्देह इसमें भी कोई भेद है। उसने अगर मुझे छोड़ दिया तो सुखी रहने के लिए नहीं बल्कि इसमें भी उसने कुछ अपना फायदा सोचा होगा।”
जमालो - बेशक ऐसा ही है, शुक्र करो कि वह तुम्हारी दौलत नहीं ले गया नहीं तो बड़ा ही अन्धेर हो जाता और तुम टुकड़े-टुकड़े को मोहताज हो जातीं। अब तुम इसका भी निश्चय रक्खो कि जैपालसिंह की जान कदापि नहीं बच सकती।
बेगम - बेशक ऐसा ही है, अब तुम्हारी क्या राय है?
जमालो - मेरी राय तो यही है कि अब तुम एक पल भी इस मकान में न ठहरो और अपनी जमा-पूंजी लेकर यहां से चल दो। तुम्हारे पास इतनी दौलत है कि किसी दूसरे शहर में आराम से रहकर अपनी जिंदगी बिता सको जहां वीरेन्द्रसिंह के ऐयारों को जाने की जरूरत न पड़े!
बेगम - तुम्हारी राय बहुत ठीक है, तो क्या तुम दोनों मेरा साथ दोगी?
जमालो - मैं जरूर तुम्हारा साथ दूंगी।
नौरतन - मैं भी ऐसी अवस्था में तुम्हारा साथ नहीं छोड़ सकती। जब सुख के दिनों में तुम्हारे साथ रही तो क्या अब दुःख के जमाने में तुम्हारा साथ छोड़ दूंगी ऐसा नहीं हो सकता।
बेगम - अच्छा तो अब निकल भागने की तैयारी करनी चाहिए।
जमालो - जरूर।
इतने ही में मकान के बाहर बहुत से आदमियों के शोरगुल की आवाज इन तीनों को मालूम पड़ी। बेगम की आज्ञानुसार पता लगाने के लिए जमालो नीचे उतर गई और थोड़ी ही देर में लौट आकर बोली, “हैं-हैं, गजब हो गया। राजा साहब के सिपाहियों ने मकान को घेर लिया और तुम्हें गिरफ्तार करने के लिए आ रहे हैं।” जमालो इससे ज्यादे न कहने पाई थी कि धड़धड़ाते हुए बहुत से सरकारी सिपाही मकान के ऊपर चढ़ आए और उन्होंने बेगम, नौरतन और जमालो को गिरफ्तार कर लिया।