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चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 6

इंद्रदेव के इस स्वर्ग-तुल्य स्थान में बंगले से कुछ दूर हटकर बगीचे के दक्खिन तरफ एक घना जामुन का पेड़ है जिसे सुंदर लताओं ने घेरकर देखने योग्य बना रखा है और जहां एक कुंज की-सी छटा दिखाई पड़ती है। उसी के नीचे साफ पानी का एक चश्मा भी बह रहा है। अपनी सुरीली बोली से लोगों के दिल लुभा लेने वाली चिड़ियां संध्या का समय निकट जान अपने घोंसले के चारों तरफ फुदक-फुदककर अपने अपौरुष बच्चों को चैतन्य करती हुई कह रही हैं कि लो मैं बहुत दूर से तुम लोगों के लिये दाना-पानी अपने पेट में भर लाई हूं जिससे तुम्हारी संतुष्टि की जाएगी।

यह रमणीक स्थान ऐसा है कि यहां दो-चार आदमी छिपकर इस तरह बैठ सकते हैं कि वे चारों तरफ के आदमियों को बखूबी देख लें पर उन्हें कोई भी न देखे। इस स्थान पर हम इस समय भूतनाथ और उसकी पहली स्त्री, कमला की मां को पत्थर की चट्टानों पर बैठे बातें करते हुए देख रहे हैं। ये दोनों मुद्दत के बिछुड़े हुए हैं और दोनों के दिल में नहीं तो कमला की मां के दिल में जरूर शिकायतों का खजाना भरा हुआ है जिसे वह इस समय बेतरह उगलने के लिए तैयार है। प्यारे पाठक, आइये हम-आप मिलकर जरा इन दोनों की बातें तो सुन लें।

भूत - शांता1 आज तुमसे मिलकर मैं बहुत ही प्रसन्न हुआ।

शांता - क्यों जो चीज किसी कारणवश खो जाती है उसे यकायक पाने से प्रसन्नता हो सकती है, मगर जो चीज जान-बूझकर फेंक दी जाती है उसके पाने की प्रसन्नता कैसी?

भूत - किसी को कहीं से एक पत्थर का टुकड़ा मिल जाय और वह उसे बेकार या बदसूरत समझकर फेंक दे, तथा कुछ समय के बाद जब उसे यह मालूम हो कि वास्तव में वह हीरा था पत्थर नहीं, तो क्या उसके फेंक देने का उसको दुःख न होगा या उसे पुनः पाकर प्रसन्नता न होगी!

शांता - अगर वह आदमी जिसने हीरे को पत्थर समझकर फेंक दिया है, यह जानकर कि वह वास्तव में हीरा था उसकी खोज करे, या इस विचार से कि उसे मैंने फलानी जगह छोड़ा या फेंका है वहां जाने से जरूर मिल जायेगा उसकी तरफ दौड़ा जाय, तो बेशक समझा जायगा कि उसे उसके फेंक देने का रंज हुआ था और उसके मिल जाने से प्रसन्नता होगी, लेकिन यदि ऐसा नहीं है तो नहीं।

भूत - ठीक है, मगर वह आदमी उस जगह जहां उसने हीरे को पत्थर समझकर फेंका था पुनः उसे पाने की आशा में तभी जायगा जब अपना जाना सार्थक समझेगा। परंतु जब उसे यह निश्चय हो जायगा कि वहां जाने में उस हीरे के साथ तू भी बर्बाद हो जाएगा अर्थात् वह हीरा भी काम का न रहेगा और तेरी भी जान जाती रहेगी तब वह उसकी खोज में क्योंकर जायगा!

शांता - ऐसी अवस्था में वह अपने को इस योग्य बनावेगा ही कि वह उस हीरे की खोज में जाने लायक न रहे यदि यह बात उसके हाथ में होगी वह हीरे को वास्तव में हीरा समझता होगा।

भूतनाथ - बेशक, मगर शिकायत की जगह तो ऐसी अवस्था में हो सकती थी जब वह अपने बिगड़े हुए कंटीले रास्ते को जिसके सबब से वह उस हीरे तक नहीं पहुंच सकता था, पुनः सुधारने और साफ करने के लिए परले सिरे का उद्योग करता हुआ दिखाई न देता।

शांता - ठीक है, लेकिन जब वह हीरा यह देख रहा है कि उसका अधिकारी या मालिक बिगड़ी हुई अवस्था में भी एक मानिक के टुकड़े को कलेजे से लगाए हुए घूम रहा है और यदि वह चाहता तो उस हीरे को भी उसी तरह रख सकता था मगर अफसोस उस हीरे की तरफ

1. शांता कमला की मां का नाम था।

जो वास्तव में पत्थर ही समझा गया है कोई भी ध्यान नहीं देता जो बेहाथ-पैर का होकर भी उसी मालिक की खोज में जगह-जगह की मिट्टी छानता फिर रहा है जिसने जान-बूझकर उसे पैर में गड़ने वाले कंकड़ की तरह अपने आगे से उठाकर फेंक दिया है और जानता है कि उस पत्थर के साथ जिसे वह व्यर्थ ही में हीरा कह रहा है वास्तव में छोटी-छोटी हीरे की कनियां भी चिपकी हुई हैं जो छोटी होने के कारण सहज ही मिट्टी में मिल जा सकती हैं, तब क्या शिकायत की जगह नहीं है!!

भूत - परंतु अदृष्ट भी कोई वस्तु है, प्रारब्ध भी कुछ कहा जाता है, और होनहार भी किसी चीज का नाम है?

शांता - यह दूसरी बात है, इन सभों का नाम लेना वास्तव में निरुत्तर (लाजवाब) होना और चलती बहस को जान-बूझकर बंद कर देना ही नहीं है बल्कि उद्योग जैसे अनमोल पदार्थ की तरफ से मुंह फेर लेना भी है। अस्तु जाने दीजिए, मेरी यह इच्छा भी नहीं है कि आपको परास्त करने की अभिलाषा से मैं विवाद करती ही जाऊं, यह तो बात ही बात में कुछ कहने का मौका मिल गया और छाती पर पत्थर रखकर जी का उबाल निकाल लिया, नहीं तो जरूरत ही क्या थी।

भूत - मैं कसूरवार हूं और बेशक कसूरवार हूं मगर यह उम्मीद भी तो न थी कि ईश्वर की कृपा से तुम्हें इस तरह जीती इस दुनिया में देखूंगा।

शांता - अगर यही आशा या अभिलाषा होती तो अपने परलोकगामी होने की खबर मुझ अभागी के कानों तक पहुंचाने की कोशिश क्यों करते और...।

भूत - बस-बस, अब मुझ पर दया करो और इस ढंग की बातें छोड़ दो क्योंकि आज बड़े भाग्य से मेरे लिए यह खुशी का दिन नसीब हुआ है। इसे जली-कटी बातें सुनाकर पुनः कड़वा न करो और यह सुनाओ कि तुम इतने दिनों तक कहां छिपी हुई थीं, अपनी लड़की कमला को किस तरह धोखा देकर चली गईं कि आज तक वह तुमको मरी हुई समझती है?

इस समय शांता का खूबसूरत चेहरा नकाब से ढका हुआ नहीं है। यद्यपि वह जमाने के हाथों सताई हुई तथा दुबली-पतली औरत है और उसका तमाम बदन पीला पड़ गया है मगर फिर भी आज की खुशी उसके सुंदर बादामी चेहरे पर रौनक पैदा कर रही है और इस बात की इजाजत नहीं देती कि कोई उसे ज्यादे उम्र वाली कहकर खूबसूरतों की पंक्ति में बैठने से रोके। हजार गई-गुजरी होने पर भी वह रामदेई (भूतनाथ की दूसरी स्त्री) से बहुत अच्छी मालूम पड़ती है और इस बात को भूतनाथ भी बड़े गौर से देख रहा है। भूतनाथ की आखिरी बात सुनकर शांता ने अपनी डबडबाई हुई आंखों को आंचल से साफ किया और एक लंबी सांस लेकर कहा –

शांता - मैं रणधीरसिंहजी के यहां से कभी न भागती अगर अपना मुंह किसी को दिखाने लायक समझती। मगर अफसोस आपके भाई ने इस बात को अच्छी तरह मशहूर किया कि

1. देखिए चंद्रकान्ता संतति, बीसवें भाग का अंत।

आपके दुश्मन (अर्थात् आप) इस दुनिया से उठ गये। इसके सबूत में उन्होंने बहुत-सी बातें पेश कीं, मगर मुझे विश्वास न हुआ तथापि इस गम में मैं बीमार हो गई और दिन-दिन मेरी बीमारी बढ़ती ही गई। उसी जमाने में मेरी मौसेरी बहिन अर्थात् दलीपशाह की स्त्री मुझे देखने के लिए मेरे घर आई। मैंने अपने दिल का हाल और बीमारी का सबब उससे बयान किया, यह भी कहा कि जिस तरह मेरे पति ने सही-सलामत रहकर भी अपने को मरा हुआ मशहूर किया उसी तरह मुझे तुम कहीं छिपाकर मरा हुआ मशहूर कर दो, अगर ऐसा हो जायगा तो मैं अपने पति को ढूंढ़ निकालने का उद्योग करूंगी। उन्होंने मेरी बात पसंद कर ली और लोगों को यह कहकर कि मेरे यहां की आबोहवा अच्छी है वहां शांता को बहुत जल्द आराम हो जायगा, मुझे अपने यहां उठा ले जाने का बंदोबस्त किया और रणधीरसिंहजी से इजाजत भी ले ली। मैं दो दिन तक अपनी लड़की कमला को नसीहत करती रही और उसके बाद उसे किशोरी के हवाले करके और अपने छोटे दूध-पीते बच्चे को गोद में लेकर दलीपशाह के घर चनी आई और धीरे-धीरे आराम होने लगी। थोड़े ही दिन बाद दलीपशाह के घर में उस भयानक आधी रात के समय आपका आना हुआ, मगर हाय, उस समय आपकी अवस्था पागलों की-सी हो रही थी और आपने धोखे में पड़कर अपने प्यारे लड़के का जिसे मैं अपने साथ ले गई थी, खून कर डाला।1

इतना कहते-कहते शांता का जी भर आया और वह हिचकियां ले-लेकर रोने लगी। भूतनाथ की बुरी अवस्था हो रही थी और इससे ज्यादे वह उस घटना का हाल नहीं सुनना चाहता था। वह यह कहता हुआ कि “बस माफ करो, अब इसका जिक्र न करो”, अपनी स्त्री शांता के पैरों पर गिरा ही चाहता था कि उसने पैर खैंचकर भूतनाथ का सिर थाम लिया और कहा - “हां-हां, क्या करते हो क्यों मेरे सिर पर पाप चढ़ाते हो मैं खूब जानती हूं कि आपने उसे नहीं पहचाना मगर इतना जरूर समझते थे कि वह दलीपशाह का लड़का है, अस्तु फिर भी आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था। खैर अब मैं इस जिक्र को छोड़ देती हूं।”

इतना कहकर शांता ने अपने आंसू पोंछे और फिर इस तरह का बयान करना शुरू किया –

“शोक और दुःख से मैं पुनः बीमार पड़ गई मगर आशालता ने धीरे-धीरे कुछ दिन में अपनी तरह मुझे भी (आराम) कर दिया। यह आशा केवल इसी बात की थी कि एक दफे आपसे जरूर मिलूंगी। मुश्किल तो यह थी कि उस घटना ने दलीपशाह को भी आपका दुश्मन बना दिया था, केवल उस घटना ने ही नहीं इसके अतिरिक्त भी दलीपशाह को बर्बाद करने में आपने कुछ उठा न रखा था यहां तक कि आखिर वह दारोगा के हाथ फंस ही गये।”

भूत - (बेचैनी के साथ लंबी सांस लेकर) ओफ! मैं कह चुका हूं कि इन बातों को मत

1. दलीपशाह ने चंद्रकान्ता के बीसवें भाग के तेरहवें बयान में इस घटना की तरफ भूतनाथ से इशारा किया।

छेड़ो, केवल अपना हाल बयान करो, मगर तुम नहीं मानतीं!

शांता - नहीं-नहीं, मैं तो अपना ही हाल बयान कर रही हूं। खैर मुख्तसर ही में कहती हूं –

उस घटना के बाद ही मेरी इच्छानुसार दलीपशाह ने मेरा और बच्चे का मर जाना मशहूर किया जिसे सुनकर हरनामसिंह और कमला भी मेरी तरफ से निश्चिंत हो गये। जब खुद दलीपशाह भी दारोगा के हाथ में फंस गये तब मैं बहुत ही परेशान हुई और सोचने लगी कि अब क्या करना चाहिए। उस समय दलीपशाह के घर में उनकी स्त्री, एक छोटा-सा बच्चा और मैं, केवल तीन ही आदमी रह गये थे। दलीपशाह की स्त्री को मैंने धीरज धराया और कहा कि अभी अपनी जान मत बर्बाद कर, मैं बराबर तेरा साथ दूंगी और दलीपशाह को खोज निकालने का उद्योग करूंगी मगर अब हम लोगों को यह घर एकदम छोड़ देना चाहिए और ऐसी जगह छिपकर रहना चाहिए जहां दुश्मनों को हम लोगों का पता न लगे। आखिर ऐसा ही हुआ अर्थात् हम लोगों की जो कुछ जमा-पूंजी थी उसे लेकर हमने उस घर को एकदम छोड़ दिया और काशीजी में जाकर एक अंधेरी गली में पुराने और गंदे मकान में डेरा डाला मगर इस बात की टोह लेते रहे कि दलीपशाह कहां हैं अथवा छूटने के बाद अपने घर की तरफ जाकर हम लोगों को ढूंढ़ते हैं या नहीं। इस फिक्र में मैं कई दफे सूरत बदलकर बाहर निकली और इधर-उधर घूमती रही। इत्तिफाक से दिल में यह बात पैदा हुई कि किसी तरह अपने लड़के हरनामसिंह से छिपकर मिलना और उसे अपना साथी बना लेना चाहिए। ईश्वर ने मेरी यह मुराद पूरी की। जब माधवी कुंअर इंद्रजीतसिंह को फंसाकर ले गई और उसके बाद उसने किशोरी पर भी कब्जा कर लिया तब कमला और हरनामसिंह दोनों आदमी किशोरी की खोज में निकले और एक-दूसरे से जुदा हो गये। किशोरी की खोज में हरनामसिंह काशी की गलियों में घूम रहा था जब उस पर मेरी निगाह पड़ी और मैंने इशारे से अलग बुलाकर अपना परिचय दिया। उसको मुझसे मिलकर जितनी खुशी हुई उसे मैं बयान नहीं कर सकती। मैं उसे अपने घर में ले गई और सब हाल उससे कह अपने दिल का इरादा जाहिर किया जिसे उसने खुशी से मंजूर कर लिया। उस समय मैं चाहती तो कमला को भी अपने पास बुला लेती मगर नहीं, उसे किशोरी की मदद के लिए छोड़ दिया क्योंकि किशोरी के नमक को मैं किसी तरह भूल नहीं सकती थी, अस्तु मैंने केवल हरनामसिंह को अपने पास रख लिया और खुद चुपचाप अपने घर में बैठी रहकर आपका और दलीपशाह का पता लगाने का काम लड़के के सुपुर्द किया। बहुत दिनों तक बेचारा लड़का चारों तरफ मारा-मारा फिरा और तरह-तरह की खबरें लाकर मुझे सुनाता रहा। जब आप प्रकट होकर कमलिनी के साथी बन गए और उसके काम के लिए चारों तरफ घूमने लगे तब हरनामसिंह ने भी आपको देखा और पहचानकर मुझे इत्तिला दी। थोड़े दिन बाद यह भी उसी की जुबानी मालूम हुआ कि अब आप नेकनाम होकर दुनिया में अपने को प्रकट किया चाहते हैं। उस समय मैं बहुत प्रसन्न हुई और मैंने हरनाम को राय दी कि तू किसी तरह राजा वीरेन्द्रसिंह के किसी ऐयार की शागिर्दी कर ले। आखिर वह तारासिंह से मिला और उसके साथ रहकर थोड़े ही दिनों में उसका प्यारा शागिर्द बल्कि दोस्त बन गया तब उसने अपना हाल तारासिंह को कह सुनाया और तारासिंह ने भी उसके साथ बहुत अच्छा बर्ताव करके उसकी इच्छानुसार उसके भेदों को छिपाया। तब से हरनामसिंह सूरत बदले हुए तारासिंह का काम करता रहा और मुझे भी आपकी पूरी-पूरी खबर मिलती रही। आपको शायद इस बात की खबर न हो कि तारासिंह की मां चंपा से और मुझसे बहिन का रिश्ता है, वह मेरे मामा की लड़की है, अस्तु चंपा ने लड़के की जुबानी हरनामसिंह का हाल सुना और जब यह मालूम हुआ कि वह रिश्ते में उसका भतीजा होता है तब उसने भी उस पर दया प्रकट की और तब से उसे बराबर अपने लड़के की तरह मानती रही।

जमानिया के तिलिस्म को खोलते और कैदियों को साथ लिए हुए जब दोनों कुमार उस खोह वाले तिलिस्मी बंगले में पहुंचे तो उन्होंने भैरोसिंह और तारासिंह को अपने पास बुला लिया और तिलिस्म का पूरा हाल उनसे कह के उन दोनों को अपने पास रखा। दलीपशाह को यह हाल भी तारासिंह ही से मालूम हुआ कि उसके बाल-बच्चे ईश्वर की कृपा से अभी तक राजी-खुशी हैं, साथ ही इसके मेरा हाल भी दलीपशाह को मालूम हुआ। उस समय तारासिंह दोनों कुमारों से आज्ञा लेकर हरनामसिंह को उस बंगले में ले आया और दलीपशाह से उसकी मुलाकात कराई। हरनामसिंह को साथ लेकर दलीपशाह काशी गये और वहां से मुझको तथा अपनी स्त्री और लड़के को साथ लेकर कुमार के पास चले आये। जब तारासिंह की जुबानी चंपा ने यह हाल सुना तब वह भी मुझसे मिलने के लिए तारासिंह के साथ यहां अर्थात् उस बंगले में आई।

भूत - जब दोनों कुमार नकाबपोश बनकर भैरोसिंह और तारासिंह को यहां ले आए उसके पहले तो तारासिंह यहां नहीं आए थे?

शांता - जी उसके पहले ही से वे दोनों यहां आते-जाते रहे। उस दिन तो प्रकट रूप में यहां लाए गये थे। क्या इतना हो जाने पर भी आपको अंदाज मालूम न हुआ?

भूत - ठीक है, इस बात का शक तो मुझे और देवीसिंह को भी होता रहा।

शांता का किस्सा भूतनाथ ने बड़े गौर के साथ ध्यान से सुना और तब देर तक आरजू-मिन्नत के साथ शांता से माफी मांगता रहा। इसके बाद पुनः दोनों में बातचीत होने लगी।

शांता - अब तो आपको मालूम हुआ कि चंपा यहां क्योंकर और किसलिए आई।

भूत - हां यह भेद तो खुल गया मगर इसका पता न लगा कि नानक और उसकी मां का यहां आना कैसे हुआ?

शांता - सो मैं न कहूंगी, यह उसी से पूछ लेना।

भूत - (ताज्जुब से) सो क्यों?

शांता - मैं उसके बारे में कुछ कहा भी नहीं चाहती।

भूत - आखिर इसका कोई सबब भी है?

शांता - सबब यही है कि उसकी यहां कोई इज्जत नहीं है बल्कि वह बेकदरी की निगाह से देखी जाती है।

भूत - वह है भी इसी योग्य! पहले तो मैं उसे प्यार करता था मगर जब से यह सुना कि उसी की बदौलत मैं जैपाल (नकली बलभद्र) का शिकार बन गया और एक भारी आफत में फंस गया, तब से मेरी तबीयत उससे खट्टी हो गई।

शांता - सो क्यों?

भूत - इसीलिए कि वह बेगम की गुप्त सहेली नन्हों से गहरी मुहब्बत रखती है और इसी सबब से वह कागज का मुट्ठा जो मैंने अपने फायदे के लिए तैयार किया था गायब हो के जैपाल के हाथ लग गया और उससे मुझे नुकसान पहुंचा। इस बात का सबब भी मैंने अपनी आंखों से देख लिया।

शांता - सो ठीक है, मैं भी दलीपशाह से यह बात सुन चुकी हूं।

भूत - 'इसी से अब मैं उसे अपनी स्त्री नहीं बल्कि दुश्मन समझता हूं। केवल नन्हों से ही नहीं बल्कि कम्बख्त गौहर से भी वही दोस्ती रखती थी और वह दोस्ती पाक न थी। (लंबी सांस लेकर) अफसोस! इसी से उस खोटी का लड़का नानक भी खोटा ही निकला।

शांता - (मुस्कराकर) तब आप उसके लिए इतना परेशान क्यों थे क्योंकि यह बात सुनने के बाद ही तो आपने उसे नकाबपोशों के स्थान में देखा था!

भूत - वह परेशानी मेरी उसकी मोहब्बत के सबब से न थी बल्कि इस खयाल से थी कि कहीं वह मुझ पर कोई नई आफत लाने के लिए तो नकाबपोशों से नहीं आ मिली।

शांता - ठीक है। यह खयाल भी हो सकता था।

भूत - फिर भी इसी बीच में जब मुझे जंगल में गाना सुना के धोखा दिया और गिरफ्तार करके अपने स्थान पर ले गई जिसका हाल शायद तुम्हें मालूम होगा, तब मेरा रंज और भी बढ़ गया।

शांता - यह हाल मुझे भी मालूम है मगर यह कार्रवाई उसकी न थी बल्कि इंद्रदेव की थी। उन्होंने ही आपके साथ यह ऐयारी की थी और उस दिन जंगल में घोड़े पर सवार जो औरत आपको मिली थी और जिसे आपने अपनी स्त्री समझा था, वह इंद्रदेव का ऐयार ही था, यह बात मैं उन्हीं (इंद्रदेव) की जुबानी सुन चुकी हूं, शायद आपसे भी वे कहें। हां उस दिन बंगले में जिस औरत को आपने देखा था वह बेशक नानक की मां थी। वह तो खुद कैदियों की तरह यहां रखी गई है, मैदान की हवा क्योंकर खा सकती है! दोनों कुमार नहीं चाहते थे कि प्रकट होने के पहले ही कोई उन लोगों का पता लगा ले इसीलिए ये सब खेल खेले गये। (कुछ सोचकर) आखिर आपने धीर-धीरे नानक की मां का हाल पूछ ही लिया, मैं उसके बारे में कुछ भी नहीं कहा चाहती थी, अस्तु अब इससे आगे और कुछ भी नहीं कहूंगी, आप उसके बारे में मुझसे कुछ न पूछें।

भूत - नहीं-नहीं, जब इतना बता चुकी हो तो कुछ और भी बताओ क्योंकि मैं उससे मिलकर कुछ भी नहीं पूछा चाहता बल्कि अब उसका मुंह देखना भी मुझे पसंद नहीं है। अच्छा यह तो बताओ कि वह कम्बख्त यहां क्यों लाई गई?

शांता - लाई नहीं गई बल्कि उसी नन्हों के यहां गिरफ्तार की गई, उस समय नानक भी उसके साथ था।

भूत - (आश्चर्य और क्रोध से) फिर भी उसी नन्हों के यहां गई थी?

शांता - जी हां।

भूत - (लम्बी सांस लेकर) लोग सच कहते हैं कि ऐयाशी का नतीजा बहुत बुरा निकलता है।

शांता - अस्तु अब उसके बारे में मुझसे कुछ न पूछिए, इंद्रदेवजी आपको सब-कुछ बता देंगे।

भूत - हां ठीक है, खैर अब उसके बारे में कुछ न पूछूंगा, जो कुछ पूछूंगा वह तुम्हारे और हरनाम ही के बारे में होगा, अच्छा एक बात और बताओ, आज के दरबार में मैंने हरनाम को हाथ में एक संदूकड़ी लिए देखा था, वह संदूकड़ी कैसी थी और उसमें क्या था?

शांता - उसमें दारोगा के हाथ की लिखी हुई बहुत-सी चीठियां हैं जिनके देखने से आपको निश्चय हो जायगा कि आपने दलीपशाह को व्यर्थ ही अपना दुश्मन समझ लिया था। पहले जब दारोगा ने दलीपशाह को लालच दिखाकर लिखा लिया था कि वह आपको गिरफ्तार करा दे, तब दो-चार चीठियों में तो दलीपशाह ने इस नीयत से कि दारोगा की शैतानियों का सबूत उससे मिलकर बटोर लें दारोगा के मतलब ही का जवाब दिया था जिससे खुश होकर उसने कई चीठियों में दलीपशाह को तरह-तरह के सब्जबाग दिखलाए, मगर जब दारोगा की कई चीठियां दलीपशाह ने बटोर लीं तब साफ जवाब दे दिया। उस समय दारोगा बहुत घबड़ाया और उसने सोचा कि कहीं ऐसा न हो कि दलीपशाह मुझसे दुश्मनी करके मेरा भेद खोल दे, अस्तु किसी तरह उसे गिरफ्तार कर लेना चाहिए। उस समय कम्बख्त दारोगा आपसे मिला और उसने दलीपशाह की पहली चीठियां आपको दिखाकर खुद आप ही को दलीपशाह का दुश्मन बना दिया, बल्कि आप ही के जरिये से दलीपशाह को गिरफ्तार भी करा लिया।

भूत - ठीक है, इस विषय में मैंने बहुत बड़ा धोखा खाया।

शांता - मगर दलीपशाह को गिरफ्तार कर लेने पर भी वे चीठियां दारोगा के हाथ न लगीं क्योंकि वे दलीपशाह की स्त्री के कब्जे में थीं, अब हम लोग उन्हें अपने साथ लाये हैं जिन्हें दारोगा के मुकदमे में पेश करेंगे।

भूत - अस्तु वह मेरे दिल का खुटका निकल गया और मुझे निश्चय हो गया कि हरनाम की कोई कार्रवाई मेरे खिलाफ न होगी।

शांता - भला वह कोई काम ऐसा क्यों करेगा जिससे आपको तकलीफ हो ऐसा खयाल भी आपको न होना चाहिए।

इन दोनों में इस तरह की बातें हो रही थीं कि किसी के आने की आहट मालूम हुई, भूतनाथ ने घूमकर देखा तो नानक पर निगाह पड़ी। जब वह पास आया तब भूतनाथ ने उससे पूछा, “क्या चाहते हो?'

नानक - मेरी मां आपसे मिलना चाहती है।

भूत - तो यहां पर क्यों न चली आई यहां कोई गैर तो था नहीं!

नानक - सो तो वही जानें।

भूत - अच्छा जाओ, उसे इसी जगह मेरे पास भेज दो।

नानक - बहुत अच्छा।

इतना कहकर नानक चला गया और इसके बाद शांता ने भूतनाथ से कहा, “शायद उसे मेरे सामने आपसे बातचीत करना मंजूर न हो, शर्म आती हो या किसी तरह का और कुछ खयाल हो, अस्तु आज्ञा दीजिए तो मैं चली जाऊं, फिर...।”

भूत - नहीं, उसे जो कुछ कहना होगा तुम्हारे सामने ही कहेगी, तुम चुपचाप बैठी रहो।

शांता - संभव है कि वह मेरे रहते यहां न आवे या उसे इस बात का खयाल हो कि तुम मेरे सामने उसकी बेइज्जती करोगे।

भूत - हो सकता है, मगर... (कुछ सोच के) अच्छा तुम जाओ।

इतना सुनकर शांता वहां से उठी और बंगले की तरफ रवाना हुई। इस समय सूर्य अस्त हो चुका था और चारों तरफ से अंधेरी झुकी आती थी।

चंद्रकांता संतति

देवकीनन्दन खत्री
Chapters
चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 15 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 16 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 17 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 15 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 15 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 8