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चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 1

धन्नूसिंह की बातों ने शिवदत्त और कल्याणसिंह को ऐसा बदहवास कर दिया कि उन्हें बात करना मुश्किल हो गया। शिवदत्त सोच रहा था कि कुछ देर की सच्ची मोहलत मिले तो मनोरमा से उसकी बहिन का हाल पूछे मगर उसी समय घबराई हुई मनोरमा खुद ही वहां आ पहुंची और उसने जो कुछ कहा वह और भी परेशान करने वाली बात थी। आखिर शिवदत्त ने मनोरमा से पूछा, “क्या तुमने अपनी आंखों से भूतनाथ को देखा?'

मनोरमा - हां, मैंने स्वयं देखा और उसने वह बात मुझी से कही थी जो मैं आप से कह चुकी हूं?

शिवदत्त - क्या वह तुम्हारी पालकी के पास आया था?

मनोरमा - हां, मैं माधवी से बात कर रही थी कि वह निडर होकर हम लोगों के पास आ पहुंचा और धमकाकर चला गया।

शिवदत्त - तो तुमने आदमियों को ललकारा क्यों नहीं?

मनोरमा - क्या आप भूतनाथ को नहीं जानते कि वह कैसा भयानक आदमी है क्या वे तीन-चार आदमी भूतनाथ को गिरफ्तार कर लेते जो मेरी पालकी के पास थे

शिवदत्त - ठीक है, वह बड़ा ही भयानक ऐयार है, दो-चार क्या दस-पांच आदमी भी उसे गिरफ्तार नहीं कर सकते। मैं तो उसके नाम से कांप जाता हूं। ओफ, वह समय मुझे कदापि नहीं भूल सकता जब उसने 'रूहा' बनकर मुझे अपने चंगुल में फंसा लिया था।[1] अपने चेले को भीमसेन की सूरत ऐसा बनाया कि मैं भी पहिचान न सका। मगर बड़े आश्चर्य की बात यह है कि आज वह असली सूरत में तुम्हें दिखाई पड़ा। उसका इस तरह चले आना मामूली बात नहीं है!

मनोरमा - जितना मैं उसका हाल जानती हूं आप उसका सोलहवां हिस्सा भी न जानते होंगे, और यही सबब है कि इस समय डर के मारे मेरा कलेजा कांप रहा है, फिर जहां तक मैं खयाल करती हूं वह अकेला भी नहीं है।

शिवदत्त - नहीं-नहीं, वह अकेला कदापि न होगा। (धन्नूसिंह की तरफ इशारा करके) इसने भी एक ऐसी ही भयानक खबर मुझे सुनाई है।

मनोरमा - (ताज्जुब से) वह क्या?

शिवदत्त - इसका हाल धन्नूसिंह की जुबानी ही सुनना ठीक होगा। (धन्नूसिंह से) हां, तुम जरा उन बातों को दोहरा तो जाओ!

धन्नूसिंह - बहुत खूब।

इतना कहकर धन्नूसिंह उन बातों को ऐसे ढंग से दोहरा गया कि मनोरमा का कलेजा कांप उठा और शिवदत्त तथा कल्याणसिंह पर पहिले से भी ज्यादे असर पड़ा।

शिवदत्त - (मनोरमा से) क्या वास्तव में वह तुम्हारी बहिन है?

मनोरमा - राम-राम, ऐसी भयानक राक्षसी मेरी बहिन हो सकती है असल तो यह है कि मैं अकेली हूं, न कोई बहिन है न भाई।

धन्नू - तब जरा खड़े-खड़े उसके पास चली जाओ और जो कुछ वह पूछे उसका जवाब दे दो।

मनोरमा - (रंज होकर) मैं क्यों उसके पास जाने लगी! जाकर कह दो कि मनोरमा नहीं आती।

धन्नू - (खैरख्वाही दिखाने के ढंग से) मालूम होता है कि तुम अपने साथ ही साथ हमारे मालिक पर भी आफत लाया चाहती हो। (शिवदत्त से) महाराज, उस राक्षसी ने जितनी बातें मुझसे कहीं मैं अदब के खयाल से अर्ज नहीं कर सकता तथापि एक बात केवल आप ही से कहने की इच्छा है।

धन्नूसिंह की बात सुनकर मनोरमा को डर के साथ ही साथ क्रोध भी चढ़ आया और वह कड़ी निगाह से धन्नूसिंह की तरफ देखकर बोली, “महाराज के खैरखाह एक तुम्हीं तो दिखाई देते हो इतनी बड़ी फौज की अफसरी करने के लिए क्यों मरे जाते हो जो एक औरत के सामने जाने की हिम्मत नहीं है?'

धन्नू - हिम्मत तो लाखों आदमियों के बीच में घुसकर तलवार चलाने की है, मगर केवल तुम्हारे सबब से अपने मालिक पर आफत लाने और अपनी जान देने का हौसला कोई बेवकूफ आदमी भी नहीं कर सकता। (शिवदत्त से) तिस पर भी महाराज जो आज्ञा दें उसे करने के लिए मैं तैयार हूं, यदि आग में कूद पड़ने के लिए भी कहें तो क्षण भर देर लगाने वाले पर लानत भेजता हूं, परन्तु मेरी बात को सुनकर तब जो चाहें आज्ञा दें!

इतना सुनकर शिवदत्त उठ खड़ा हुआ और धन्नूसिंह को अपने पीछे आने का इशारा करके कुछ दूर चला गया जहां से उनकी बातचीत कोई दूसरा नहीं सुन सकता था।

शिवदत्त - हां धन्नूसिंह कहो अब क्या कहते हो?

धन्नू - महाराज क्षमा करें, रंज न हों! मैं सरकार का नमकख्वार गुलाम हूं इसलिए सिवाय सरकार की भलाई के मुझे और कुछ भी नहीं सूझता। मैं यह नहीं चाहता कि मनोरमा के सबब से, जो आपकी कुछ भी भलाई नहीं कर सकती बल्कि आपके सबब से अपने को फायदा पहुंचा सकती है, आप किसी आफत में फंस जायें। मैं सच कहता हूं कि वह भयानक औरत साधारण नहीं मालूम होती। उसने कसम खाकर कहा था कि, “मैं केवल एक पहर तक राजा शिवदत्त का मुलाहिजा करूंगी, इसके अन्दर अगर मनोरमा मेरे पास न भेजी जायगी या अलग न कर दी जायगी तो राजा शिवदत्त को इस दुनिया से उठा दूंगी और अपने कुत्तों को जो आदमी के खून के हरदम प्यासे रहते हैं...!” बस महाराज अब आगे कहने से अदब जबान रोकता है। (कांपकर) ओफ! वे भयानक कुत्ते जो शेर का कलेजा फाड़कर खा जायें (रुककर) फिर मनोरमा की जुबानी भी आप सुन ही चुके हैं कि भूतनाथ यकायक यहां पहुंचकर मनोरमा से क्या कह गया है इसलिए (हाथ जोड़कर) मैं अर्ज करता हूं कि किसी बहाने मनोरमा को अपने से अलग करें। सरकार खूब समझ सकते हैं कि जिस काम के लिए जा रहे हैं उसमें सिवाय कुंअर कल्याणसिंह के और कोई भी मदद नहीं कर सकता, फिर एक मामूली औरत के लिए अपना हर्ज या नुकसान करना उचित नहीं, आगे महाराज मालिक हैं जो चाहें करें।

शिवदत्त - तुम्हारा कहना बहुत ठीक है, मैं भी यही सोच रहा हूं।

जिस जगह ये दोनों खड़े होकर बातें कर रहे थे वहां एकदम निराला था, कोई आदमी पास न था। शिवदत्त ने अपनी बात पूरी भी न की थी यकायक भूतनाथ वहां आ पहुंचा और कड़ाई के ढंग से शिवदत्त की तरफ देखकर बोला, “इस अंधेरे में शायद तुम मुझे न पहिचान सको इसलिए मैं अपना नाम भूतनाथ बताकर तुम्हें होशियार करता हूं कि घण्टे भर के अन्दर मेरी खुराक मनोरमा को मेरे हवाले करो या अपने साथ से अलग कर दो नहीं तो जीता न छोडूंगा!” इतना कहकर बिना कुछ जवाब सुने भूतनाथ वहां से चला गया और शिवदत्त उसकी तरफ देखता ही रह गया।

शिवदत्त एक दफे भूतनाथ के हाथ में पड़ चुका था और भूतनाथ ने जो सलूक उसके साथ किया था उसे वह कदापि भूल नहीं सकता था बल्कि भूतनाथ के नाम ही से उसका कलेजा कांपता था, इसलिए वहां यकायक भूतनाथ के आ पहुंचने से वह कांप उठा और धन्नूसिंह की तरफ देखकर बोला, “निःसन्देह यह बड़ा ही भयानक ऐयार है!”

धन्नू - इसीलिए मैं अर्ज करता हूं कि साधारण औरत के लिए इस भयानक ऐयार और उस राक्षसी को अपना दुश्मन बना लेना उचित नहीं है।

शिवदत्त - तुम ठीक कहते हो, अच्छा आओ मैं कल्याणसिंह से राय मिलाकर इसका बन्दोबस्त करता हूं।

धन्नूसिंह को साथ लिये हुए शिवदत्त अपने ठिकाने पहुंचा जहां कल्याणसिंह और मनोरमा को छोड़ गया था। मनोरमा को यह कहकर वहां से विदा कर दिया कि - “तुम अपने ठिकाने जाकर बैठो, हम यहां से कुछ करने का बन्दोबस्त करते हैं और निश्चय हो जाने पर तुमको बुलावेंगे” और जब वह चली गई और वहां केवल ये ही तीन आदमी रह गये तब बातचीत होने लगी।

शिवदत्त ने धन्नूसिंह की जुबानी जो कुछ सुना था और धन्नूसिंह की जो कुछ राय हुई थी वह सब तथा बातचीत के समय यकायक भूतनाथ के आ पहुंचने और धमकाकर चले जाने का पूरा हाल कल्याणसिंह से कहा और पूछा कि - “अब आपकी क्या राय होती है' कुंअर कल्याणसिंह ने कहा, “मैं धन्नूसिंह की राय पसन्द करता हूं। मनोरमा के लिए अपने को आफत में फंसाना बुद्धिमानी का काम नहीं है, अस्तु किसी मुनासिब ढंग से उसे अलग ही कर देना चाहिए।”

शिवदत्त - तिस पर भी अगर जान बचे तो समझें कि ईश्वर की बड़ी कृपा हुई।

कल्याण - सो क्या?

शिवदत्त - मैं यह सोच रहा हूं कि भूतनाथ का यहां आना केवल मनोरमा ही के लिए नहीं है। ताज्जुब नहीं कि हम लोगों का कुछ भेद भी उसे मालूम हो और वह हमारे काम में बाधा डाले।

कल्याण - ठीक है, मगर काम आधा हो चुका है केवल हमारे और आपके वहां पहुंचने भर की देर है। यदि भूतनाथ हम लोगों का पीछा भी करेगा तो रोहतासगढ़ तहखाने के अन्दर हमारी मर्जी के बिना वह कदापि नहीं जा सकता और जब तक मनोरमा को ले जाकर कहीं रखने या अपना कोई काम निकालने का बन्दोबस्त करेगा तब तक तो हम लोग रोहतासगढ़ में पहुंचकर जो कुछ करना है कर गुजरेंगे।

शिवदत्त - ईश्वर करे ऐसा ही हो, अच्छा अब यह कहिये कि मनोरमा को किस ढंग से अलग करना चाहिए?

कल्याण - (धन्नूसिंह से) तुम बहुत पुराने और तजुर्बेकार आदमी हो, तुम ही बताओ कि क्या करना चाहिए?

धन्नू - मेरी तो यही राय है कि मनोरमा को बुलाकर समझा दिया जाय कि “अगर तुम हमारे साथ रहोगी तो भूतनाथ तुम्हें कदापि न छोड़ेगा, सो तुम मर्दानी पोशाक पहिरकर धन्नूसिंह के (हमारे) साथ शिवदत्तगढ़ की तरफ चली जाओ, वह तुम्हें हिफाजत के साथ वहां पहुंचा देगा, जब हम लौटकर तुमसे मिलेंगे तो जैसा होगा किया जायेगा। अगर तुम अपने आदमियों को साथ ले जाना चाहोगी तो भूतनाथ को मालूम हो जायेगा, अतएव तुम्हारा अकेले ही यहां से निकल जाना उत्तम है।”

शिवदत्त - ठीक है लेकिन अगर वह इस बात को मंजूर कर ले तो क्या तुम भी उसी के साथ जाओगे तब तो हमारा बड़ा हर्ज होगा?

धन्नू - जी नहीं, मैं चार-पांच कोस तक उसके साथ जाऊंगा इसके बाद भुलावा देकर उसे अकेला छोड़ आपसे आ मिलूंगा।

शिवदत्त - (आश्चर्य से) धन्नूसिंह, क्या तुम्हारी अक्ल में कुछ फर्क पड़ गया है या तुम्हें निसयान (भूल जाने) की बीमारी हो गई है अथवा तुम कोई दूसरे धन्नूसिंह हो गए हो क्या तुम नहीं जानते कि मनोरमा ने मुझे किस तरह से रुपये की मदद की है और उसके पास कितनी दौलत है तुम्हारी ही मार्फत मनोरमा से कितने ही रुपये मंगवाये थे तो क्या इस हीरे की चिड़िया को मैं छोड़ सकता हूं अगर ऐसा ही करना होता तो तरद्दुद की जरूरत ही क्या थी, इसी समय कह देते कि हमारे यहां से निकल जा!

धन्नू - (कुछ सोचकर) आपका कहना ठीक है, मैं तो इन बातों को भूल नहीं गया, मैं खूब जानता हूं कि वह बेइन्तहा खजाने की चाभी है, मगर मैंने यह बात इसलिए कही कि जब उसके सबब से हमारे सरकार ही आफत में फंस जायेंगे तो वह हीरे की चिड़िया किसके काम आवेगी!

शिवदत्त - नहीं-नहीं तुम इसके सिवाय और कोई तर्कीब ऐसी सोचो जिसमें मनोरमा इस समय हमारे साथ से अलग तो जरूर हो जाय मगर हमारी मुट्ठी से न निकल जाय।

धन्नू - (सोचकर) अच्छा तो एक काम किया जाये।

शिवदत्त - वह क्या?

धन्नू - इसे तो आप निश्चय जानिये कि यदि मनोरमा इस लश्कर के साथ रहेगी तो भूतनाथ के हाथ से कदापि न बचेगी और जैसा कि भूतनाथ कह चुका है कि सरकार के साथ भी बेअदबी जरूर करेगा, इसलिए यह तो अवश्य है कि उसे अलग जरूर किया जाये मगर वह रहे अपने कब्जे ही में। तो बेहतर यह होगा कि वह मेरे साथ की जाय, मैं जंगल ही जंगल एक गुप्त पगडण्डी से जिसे मैं बखूबी जानता हूं रोहतासगढ़ तक उसे ले जाऊं और जहां आप या कुंअर साहब आज्ञा दें ठहरकर राह देखूं। भूतनाथ को जब मालूम हो जायगा कि मनोरमा अलग कर दी गई तब वह उसे खोजने की धुन में लगेगा, मगर मुझे नहीं पा सकता। हां एक बात और है, आप भी यहां से शीघ्र ही डेरा उठायें और मनोरमा की पालकी इसी जगह छोड़ दें जिससे मनोरमा को अलग कर देने का विश्वास भूतनाथ को पूरा-पूरा हो जाय।

कल्याण - हां यह राय बहुत अच्छी है, मैं इसे पसन्द करता हूं।

शिवदत्त - मुझे भी पसन्द है, मगर धन्नूसिंह को टिककर राह देखने का ठिकाना बताना आप ही का काम है।

कल्याण - हां-हां, मैं बताता हूं, सुनो धन्नूसिंह!

धन्नू - सरकार!

कल्याण - रोहतासगढ़ पहाड़ी के पूरब तरफ एक बहुत बड़ा कुआं है और उस पर टूटी-फूटी इमारत भी है।

धन्नू - जी हां मुझे मालूम है।

कल्याण - अच्छा तो अगर तुम उस कुएं पर खड़े होकर पहाड़ की तरफ देखोगे तो टीले के ढंग का एक खण्ड पर्वत दिखाई देगा जिसके ऊपर सूखा हुआ पुराना पीपल का पेड़ है और उसी पेड़ के नीचे एक खोह का मुहाना है। उसी जगह तुम हम लोगों का इन्तजार करना क्योंकि उसी खोह की राह से हम लोग रोहतासगढ़ तहखाने के अन्दर घुसेंगे, मगर उस झील तक पहुंचने का रास्ता जब तक हम न बतावें तुम वहां नहीं जा सकते। (शिवदत्त से) आप मनोरमा को बुलवाकर सब हाल कहिये, अगर वह मंजूर करे तो हम धन्नूसिंह को रास्ते का हाल समझा दें।

शिवदत्त - (धन्नूसिंह से) तुम ही जाकर उसे बुला लाओ।

“बहुत अच्छा” कहकर धन्नूसिंह चला गया और थोड़ी ही देर में मनोरमा को साथ लिये आ पहुंचा। उसके विषय में जो कुछ राय हो चुकी थी उसे कल्याणसिंह ने ऐसे ढंग से मनोरमा को समझाया कि उसने कबूल कर लिया और धन्नूसिंह के साथ चले जाना ही अच्छा समझा। कुंअर कल्याणसिंह ने उस टीले तक पहुंचने का रास्ता धन्नूसिंह को अच्छी तरह समझा दिया। दो घोड़े चुपचुपाते तैयार किये गये, मनोरमा ने मर्दानी पोशाक पालकी के अन्दर बैठकर पहिरी और घोड़े पर सवार हो धन्नूसिंह के साथ रवाना हो गई। धन्नूसिंह की सवारी का घोड़ा बनिस्बत मनोरमा के घोड़े के तेज और ताकतवर था। शब्दार्थ:

चंद्रकांता संतति

देवकीनन्दन खत्री
Chapters
चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 15 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 16 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 17 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 15 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 15 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 6 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