Get it on Google Play
Download on the App Store

चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 8

यद्यपि चुनारगढ़ वाले तिलिस्पी खंडहर की अवस्था ही जीतसिंह ने बदल दी और अब वह आला दर्जे की इमारत बन गई है मगर उसके चारों तरफ दूर-दूर तक जो जंगलों की शोभा थी उसमें किसी तरह की कमी उन्होंने न होने दी।

सुबह को सोहावना समय है और राजा सुरेन्द्रसिंह, वीरेन्द्रसिंह, जीतसिंह तथा तेजसिंह वगैरह धुर ऊपर वाले कमरे में बैठे जंगल की शोभा देखने के साथ ही साथ आपस में धीरे-धीरे बात भी करते जाते हैं। जंगली पेड़ों के पत्तों से छनी और फूलों की महक से सोंधी भई दक्षिणी हवा के झपेटे आ रहे हैं और रात भर की चुप बैठी हुई तरह-तरह की चिड़ियां सबेरा होने की खुशी में अपनी सुरीली आवाजों से लोगों का जी लुभा रही हैं। स्याह तीतर अपनी मस्त और बंधी हुई आवाज से हिन्दू-मुसलमान, कुंजड़े और कस्साब में झगड़ा पैदा कर रहे हैं। मुसलमान कहते हैं कि तीतर साफ आवाज में यही कह रहा है कि 'सुब्हान तेरी कुदरत' मगर हिन्दू इस बात को स्वीकार नहीं करते, कहते हैं कि यह स्याह तीतर 'राम लक्ष्मण दशरथ' कहकर अपनी भक्ति का परिचय दे रहा है। कुंजड़े इसे भी नहीं मानते और उसकी बोली का मतलब 'मूली प्याज अदरक' समझकर अपना दिल खुश कर रहे हैं, परन्तु कस्साबों को सिवाय इसके और कुछ नहीं सूझता कि यह तीतर 'कर जबह और ढक रख' का उपदेश दे रहा है।

इसी समय देवीसिंह भी वहां आ पहुंचे और भूतनाथ और बलभद्रसिंह के हाजिर होने की इत्तिला दी। इच्छानुसार दोनों ने सामने आकर सलाम किया और फर्श पर बैठने के बाद इशारा पाकर भूतनाथ ने तेजसिंह से कहा –

भूत - (बलभद्रसिंह की तरफ इशारा करके) इनका हाल सुनने के लिए जी बेचैन हो रहा है, मैं इनसे कई दफे पूछ चुका हूं मगर ये कुछ कहते नहीं।

तेज - (बलभद्रसिंह से) अब तो आपकी तबियत ठिकाने हो गई होगी?

बल - जी हां, अब मैं बहुत अच्छा और अपना हाल कहने के लिए तैयार हूं।

तेज - अच्छी बात है, हम लोग भी सुनने के लिए तैयार हैं और आप ही का इन्तजार कर रहे थे।

सभों का ध्यान बलभद्रसिंह की तरफ खिंच गया और बलभद्रसिंह ने अपने गायब होने का हाल इस तरह कहना शुरू किया –

इस बात की तो मुझे कुछ भी खबर नहीं कि मुझे कौन ले गया और क्योंकर ले गया। उस दिन मैं भूतनाथ के पास ही एक चारपाई पर सो रहा था और जब मेरी आंख खुली तो मैंने अपने को एक हरे-भरे और खूबसूरत बाग में पाया। उस समय मैं बिल्कुल मजबूर था अर्थात् मेरे हाथों में हथकड़ी और पैरों में बेड़ी पड़ी हुई थी और एक औरत नंगी तलवार लिए मेरे सामने खड़ी थी। मैंने सोचा कि अब मेरी जान नहीं बचती और मेरे भाग्य ही में कैदी बनकर जान देना बदा है। बहुत-सी बातें सोच-विचारके मैंने उस औरत से पूछा कि 'तू कौन है और मैं यहां क्योंकर पहुंचा हूं? जिसके जवाब में उस औरत ने कहा कि 'तुझे मैं यहां ले आई हूं और इस समय तू मेरा कैदी है। मैं जिस मुसीबत में फंसी हुई हूं उससे छुटकारा पाने के लिए इसके सिवाय और कोई तर्कीब न सूझी कि तुझे अपने कब्जे में करके अपने छुटकारे की सूरत निकालूं क्योंकि मेरा दुश्मन तेरे ही कब्जे में है। अगर तू उसे समझा-बुझाकर राह पर ले आवेगा तो मेरे साथ-साथ तेरी जान बच जायगी।'

उस औरत की बातें सुनकर मुझे बड़ा ही ताज्जुब हुआ और मैंने उससे पूछा, 'वह है कौन जो तेरा दुश्मन है और मेरे कब्जे में है?

औरत - तेरी बेटी कमलिनी मेरे साथ दुश्मनी कर रही है।

मैं - क्यों?

औरत - उसकी खुशी, मैंने तो उसका नुकसान नहीं किया।

मैं - आखिर दुश्मनी का कोई सबब भी तो होगा?

औरत - अगर कोई सबब है तो केवल इतना ही कि वह भूतनाथ का पक्ष करती है और मुझे भूतनाथ का दुश्मन समझती है मगर मैं कसम खाकर कहती हूं कि मुझे भूतनाथ से जरा भी रंज नहीं है बल्कि मैं भूतनाथ को अपना मददगार और भाई समझती हूं। और मुझे भूतनाथ से किसी तरह का रंज होता तो मैं तुझे गिरफ्तार करके न लाती बल्कि भूतनाथ ही को ले आती। क्योंकि जिस तरह मैं तुझे उठा लाई हूं उसी तरह भूतनाथ को भी उठा ला सकती थी। खैर, अब मैं चाहती हूं कि तू एक चिट्ठी कमलिनी के नाम की लिख दे कि वह मेरे साथ दुश्मनी का बर्ताव न करे। अगर तू अपनी कसम देके यह बात कमलिनी को लिख देगा तो वह जरूर मान जायगी।

मैंने कई तरह से, उलट-फेरके, कई तरह की बातें उस औरत से पूछीं मगर साफ-साफ न मालूम हुआ कि कमलिनी उसके साथ दुश्मनी क्यों करती है इसके अतिरिक्त मुझे इस बात का भी निश्चय हो गया कि जब तक मैं कमलिनी के नाम की चिट्ठी न लिख दूंगा तब तक मेरी जान को छुट्टी न मिलेगी। चिट्ठी लिखने से इनकार करने के कारण कई दिनों तक मैं उसका कैदी बना रहा, आखिर लाचार हो मैंने उसकी इच्छानुसार पत्र लिख दिया, तब उसने बेहोशी की दवा सुंघाकर मुझे बेहोश किया और उसके बाद जब मेरी आंख खुली तो मैंने अपने को आपके सामने पाया।

भूत - आपको यह नहीं मालूम हुआ कि उस औरत का नाम क्या था?

बल - मैंने कई दफे नाम पूछा मगर उसने न बताया।

मालूम होता है कि बलभद्रसिंह ने अपना जो कुछ हाल बयान किया उस पर हमारे राजा साहब या ऐयारों को विश्वास न हुआ मगर उनकी खातिर से तेजसिंह ने कह दिया कि 'ठीक है, ऐसा ही होगा।'

बलभद्रसिंह और भूतनाथ को राजा साहब बिदा किया ही चाहते थे कि उसी समय इन्द्रदेव के आने की इत्तिला मिली। आज्ञानुसार इन्द्रदेव हाजिर हुए और सभों को सलाम करने के बाद इशारा पाकर तेजसिंह के बगल में बैठ गए।

इन्द्रदेव के आने से हमारे राजा साहब और ऐयारों को बड़ी खुशी हुई और इसीलिए पन्नालाल, रामनारायण और पं. बद्रीनाथ वगैरह हमारे बाकी के ऐयार लोग भी जो इस समय यहां हाजिर और इस इमारत के बाहरी तरफ टिके हुए थे इन्द्रदेव के साथ ही साथ राजा साहब के पास आ पहुंचे क्योंकि इन्द्रदेव, बलभद्रसिंह और भूतनाथ का अनूठा हाल जानने के लिए सभी बेचैन हो रहे थे और खास करके भूतनाथ के मुकद्दमे से तो सभों को दिलचस्पी थी। इसके अतिरिक्त इन्द्रदेव अपने साथ दो कैदी अर्थात् नकली बलभद्रसिंह और नागर को भी लाए थे और बोले थे कि 'काशिराज के भेजे हुए और भी कई कैदी थोड़ी देर में हाजिर हुआ चाहते हैं' जिस कारण हमारे ऐयारों की दिलचस्पी और भी बढ़ रही थी।

सुरेन्द्र - तुम्हारे आने से हम लोगों को बड़ी प्रसन्नता हुई। इन्द्रजीत और गोपालसिंह तुम्हारी बड़ी प्रशंसा करते हैं और वास्तव में तुमने जो कुछ किया है वह प्रशंसा के योग्य भी है।

इन्द्रदेव - (हाथ जोड़कर) मैं तो किसी योग्य भी नहीं हूं और न कोई काम ही मेरे हाथ से ऐसा निकला जिससे महाराज के गुलाम के बराबर भी अपने को समझने की प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकूं - हां दुर्दैव ने जो कुछ मेरे साथ बर्ताव किया और उसके सबब से मुझ अभागे को जो कष्ट भोगने पड़े उन्हें सुनकर दयालु महाराज को मुझ पर दया अवश्य आई होगी।

सुरेन्द्र - हम लोग ईश्वर को धन्यवाद देते हैं जिसकी कृपा से एक विचित्र और अनूठी घटना के साथ तुम्हारी स्त्री और लड़की का पता लग गया और तुमने उन दोनों को जीती-जागती देखा।

इन्द्र - यह सब-कुछ आपके और कुमारों के चरणों की बदौलत हुआ। वास्तव में तो मैं भाड़े की जिन्दगी बिताता हुआ दुनिया से विरक्त ही हो चुका था। अब भी वे दोनों आप लोगों के चरणों की धूल आंखों में लगा लेंगी तभी मेरी प्रसन्नता का कारण होंगी। आशा है कि आज ही या कल तक राजा गोपालसिंह भी उन दोनों तथा किशोरी, कामिनी, लक्ष्मीदेवी, कमलिनी, लाडिली और कमला इत्यादि को लेकर यहां आवें और महाराज के चरणों का दर्शन करेंगे।

सुरेन्द्र - (आश्चर्य और प्रसन्नता के साथ) हां! क्या गोपाल ने तुम्हें कुछ लिखा है?

इन्द्रदेव - जी हां, उन्होंने मुझे लिखा है कि 'मैं शीघ्र ही उन सभों को लेकर महाराज की सेवा में उपस्थित हुआ चाहता हूं। तुम भी अपने दोनों कैदी नकली बलभद्रसिंह और नागर को लेकर काशिराज से मिलते हुए चुनार जाओ और काशिराज ने हम पर कृपा करके हमारे जिन दुश्मनों को कैद कर रखा है अर्थात् बेगम, जमालो और नौरतन वगैरह को भी अपने साथ लेते जाओ।' अस्तु इस समय उन्हीं के लिखे अनुसार मैं सेवा में उपस्थित हुआ हूं!

सुरेन्द्र - (उत्कण्ठा के साथ) तो क्या तुम उन लोगों को भी अपने साथ लेते आए हो?

इन्द्रदेव - जी हां और उन सभों को बाहर सरकारी सिपाहियों की सुपुर्दगी में छोड़ आया हूं। बेगम वगैरह का हाल तो काशिराज ने महाराज को लिखा होगा?

सुरेन्द्र - हां काशिराज ने गोपालसिंह को लिखा था कि तुम्हारे ऐयार भूतनाथ के निशान देने के मुताबिक बलभद्रसिंह के दुश्मन गिरफ्तार कर लिए गए हैं और मनोरमा का मकान भी जब्त कर लिया गया है। गोपालसिंह ने यह समाचार मुझको लिखा था!

इन्द्रदेव - ठीक है तो अब उन कैदियों के लिए भी उचित प्रबन्ध कर देना चाहिए जिन्हें मैं अपने साथ लाया हूं।

सुरेन्द्र - उसका प्रबन्ध बद्रीनाथ कर चुके होंगे क्योंकि कैदियों का इन्तजाम उन्हीं के सुपुर्द है।

बद्री - (इन्द्रदेव से) उनके लिए आप तरद्दुद न करें क्योंकि वे लोग अपने उचित स्थान पर पहुंचा दिये गए।

पन्नालाल - (सुरेन्द्रसिंह से - भूतनाथ और बलभद्रसिंह की तरफ बताकर) मगर इन दोनों महाशयों में से जिनकी खातिरदारी मेरे सुपुर्द की गई यह बलभद्रसिंह कहते हैं कि मैं महाराज का अन्न न खाऊंगा बल्कि अपने आराम की कोई चीज भी यहां से न लूंगा क्योंकि अब यह बात मालूम हो चुकी है कि राजा गोपालसिंह महाराज के पोते हैं और...।

सुरेन्द्र - ठीक है, वास्तव में ऐसा ही होना चाहिए। (बलभद्रसिंह से) मगर आप बहुत-सी मुसीबत और कैद से छूटकर आए हैं इसलिए आपके पास रुपये-पैसे की जरूर कमी होगी, फिर आप क्योंकर अपने लिए हर तरह का सामान जुटा सकेंगे

बलभद्र - मैं भी इसी फिक्र में डूबा हुआ था मगर ईश्वर ने बड़ी कृपा की जो मेरे प्यारे मित्र इन्द्रदेव को यहां भेज दिया। अब मुझे किसी तरह की तकलीफ न होगी, जो कुछ जरूरत पड़ेगी मैं इनसे ले लूंगा, फिर इसके बाद मुझे यह भी आशा है कि दुष्टों का मुकद्दमा हो जाने पर बेगम के कब्जे से निकली हुई मेरी दौलत भी मुझे मिल जायगी।

इन्द्र - (हाथ जोड़कर महाराज सुरेन्द्रसिंह से) मेरे मित्र बलभद्रसिंह जो कुछ कह रहे हैं ठीक है और आशा है कि महाराज भी इस बात को स्वीकार कर लेंगे।

सुरेन्द्र - (पन्नालाल से) खैर ऐसा ही किया जाय, इन्द्रदेव का डेरा बलभद्रसिंह के साथ ही करा दो जिससे ये दोनों मित्र प्रसन्नता से आपस में बातें करते रहें।

इन्द्रदेव - (हाथ जोड़कर) मैं भी यही अर्ज किया चाहता था। आज न मालूम किस तरह, कितने दिनों के बाद, ईश्वर ने मित्र - दर्शन का सुख दिया है, सो भी ऐसे मित्र का दर्शन जिसके मिलने की आशा कर ही नहीं सकते थे और इसके लिए हम लोग भूतनाथ के बड़े ही कृतज्ञ हैं।

भूतनाथ - यह सब महाराज के चरणों का प्रताप है जिनके सदैव दर्शन के लोभ से महाराज का कुछ न बिगाड़ने पर भी मैं अपने को दोषी बनाए और भगवती की कृपा पर भरोसा किए बैठा हुआ हूं।

इन्द्रदेव - (महाराज की तरफ देखके) वास्तव में ऐसा ही है। अभी तक जो कुछ मालूम हुआ है उससे तो यही जाना जाता है कि भूतनाथ ने महाराज के यहां एक दफे चोरी करने के अतिरिक्त और कोई काम ऐसा नहीं किया जिससे महाराज या महाराज के सम्बन्धियों को दुःख हो...।

भूतनाथ - (लज्जा ने नीची गर्दन करके) और सो भी बदनीयती के साथ नहीं!

इन्द्रदेव - आगे चलकर और कोई बात जानी जाय तो मैं नहीं कह सकता, मगर...।

भूत - ईश्वर न करे ऐसा हो।

बीरेन्द्र - भूतनाथ ने अगर हम लोगों का कोई कसूर किया भी हो तो अब हम उस पर ध्यान नहीं दे सकते क्योंकि रोहतासगढ़ के तहखाने में मैं भूतनाथ का कसूर माफ कर चुका हूं।

भूत - ईश्वर आपका सहायक रहे!

इन्द्रदेव - लेकिन अगर भूतनाथ ने किसी ऐसे के साथ बुरा बर्ताव किया हो जिससे आज के पहिले महाराज का कोई सम्बन्ध न था तो उस पर भी महाराज को विशेष ध्यान न देना चाहिए।

तेज - जी हां मगर इसमें कोई शक नहीं कि भूतनाथ की जीवनी अनेक अद्भुत-अनूठी और दुखद घटनाओं से भरी हुई है। मैं समझता हूं कि भूतनाथ ने लोगों के दिल पर अपना भयानक प्रभाव तो पैदा किया परन्तु अपने कामों की बदौलत अपने को सुखी न बना सका, उलटा इसने जमाने को दिखा दिया कि प्रतिष्ठा और सभ्यता का पल्ला छोड़कर केवल लक्ष्मी का कृपापात्र बनने के लिए उद्योग और उत्साह दिखाने वाले का परिणाम कैसा होता है।

इन्द्रदेव - निःसन्देह ऐसा ही है। अगर भूतनाथ उसके साथ ही साथ प्रतिष्ठा का पल्ला भी मजबूती के साथ पकड़े होता और इस बात पर ध्यान रखता कि जो कुछ करे वह इसकी प्रतिष्ठा के विरुद्ध न होने पावे तो आज दुनिया में भूतनाथ तीसरे दर्जे का ऐयार कहा जाता।

जीत - (मुस्कुराकर) मगर सुना जाता है कि अब भूतनाथ इज्जत और हुर्मत की मीनार पर चढ़कर दुनिया की सैर किया चाहता है और यह बात देवताओं को भी वश में कर लेने वाले मनुष्य की सामर्थ्य से बाहर नहीं।

इन्द्रदेव - अगर सिफारिश न समझी जाय तो मैं यह कहने का हौसला कर सकता हूं कि दुनिया में इज्जत और हुर्मत उसी को मिल सकती है जो इज्जत और हुर्मत का उचित बर्ताव करता हुआ किसी बड़े इज्जत और हुर्मत वाले का कृपापात्र बने।

देवी - भूतनाथ का खयाल भी आजकल इन्हीं बातों पर है। मैंने बहुत दिनों तक छिपे - छिपे भूतनाथ का पीछा करके जान लिया है कि भूतनाथ को होशियारी, चालाकी और ऐयारी की विद्या के साथ ही साथ दौलत की कमी भी नहीं है। अगर यह चाहे तो बेफिक्री के साथ अमीराना ढंग पर अपनी जिन्दगी बिता सकता है, मगर भूतनाथ इसे पसन्द नहीं करता और खूब समझता है कि वह सच्चा सुख जो प्रतिष्ठा, सभ्यता और सज्जनता के साथ सज्जन और मित्र मण्डली में बैठकर हंसने-बोलने से प्राप्त होता है और ही कोई वस्तु है और उसके बिना मनुष्य का जीवन वृथा है।

बलभद्र - बेशक, यही सबब है कि आजकल भूतनाथ अपना समय ऐसे ही कामों और विचारों में बिता रहा है और चाहता है कि अपना चेहरा बेदाग आईने में उसी तरह देख सके जिस तरह हीरा निर्मल जल में, मगर इसके लिए भूतनाथ को अपने पुराने मालिक से भी मदद लेनी चाहिए।

इन्द्रदेव - (कुछ चौंककर) हां, मैं यह निवेदन करना तो भूल ही गया कि आज ही कल में यहां रणधीरसिंह भी आने वाले हैं, अस्तु उनके लिए महाराज को प्रबन्ध कर देना चाहिए।

यह एक ऐसी बात थी जिसने भूतनाथ को चौंका दिया और वह थोड़ी देर के लिए किसी गम्भीर चिन्ता में निमग्न हो गया, मगर उद्योग करके उसने शीघ्र ही अपने दिल को सम्हाला और कहा –

भूतनाथ - क्योंकि वे महाराज के मेहमान बनकर इस मकान में रहना कदाचित् स्वीकार न करेंगे।

जीत - ठीक है, तो उनके लिए दूसरा प्रबन्ध किया जायगा।

इन्द्र - उनका आदमी उनके लिए खेमा वगैरह सामान लेकर आता ही होगा।

जीत - (इन्द्रदेव से) हमारे पास कोई इत्तिला तो नहीं आई!

इन्द्रदेव - जी यह काम भी मेरे ही सुपुर्द किया गया था।

जीत - तो क्या तुम्हारे पास उनका कोई आदमी या पत्र गया था?

इन्द्र - जी नहीं, वे स्वयं राजा गोपालसिंह के पास यह सुनकर गए थे कि माधवी उन्हीं के यहां कैद है, क्योंकि उन्होंने अपने हाथ से माधवी को मार डालने का प्रण किया था...।

सुरेन्द्र - (ताज्जुब से) तो क्या उन्होंने माधवी को अपने हाथों से मारा?

इन्द्र - जी नहीं, अपने खानदान की एक लड़की को मारकर हाथ रंगने की बनिस्बत प्रतिज्ञा भंग करना उन्होंने उत्तम समझा, उस समय मैं भी वहां था।

भूत - (सुरेन्द्रसिंह से हाथ जोड़कर) यदि मुझे आज्ञा हो तो खेमा वगैरह खड़ा करने का इन्तजाम मैं करूं और समय पर अगवानी के लिए कुछ दूर जाकर अपना कलंकित मुख उनको दिखाऊं। यद्यपि मैं इस योग्य नहीं हूं और न वे मेरी सूरत देखना पसन्द ही करेंगे मगर उनके नमक से पला हुआ यह शरीर उनसे दुर्दुराया जाकर भी अपनी प्रतिष्ठा ही समझेगा।

सुरेन्द्र - ठीक है मगर उनकी इच्छा के विरुद्ध ऐसा करने की आज्ञा हम नहीं दे सकते। हां, यदि तुम अपनी इच्छा से ऐसा करो तो हम रोकना भी उचित नहीं समझेंगे।

ये बातें हो ही रही थीं कि जमानिया से राजा गोपालसिंह के कूच करने की इत्तिला मिली, इस तौर पर कि - 'किशोरी, कामिनी और लक्ष्मीदेवी वगैरह को लिए राजा गोपालसिंह चले आ रहे हैं।'

चंद्रकांता संतति

देवकीनन्दन खत्री
Chapters
चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 15 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 16 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 17 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 15 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 15 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 8