Get it on Google Play
Download on the App Store

चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 4

यह बात तो तै हो चुकी थी कि सब कामों के पहले कुंअर इंद्रजीतसिंह और आनंदसिंह की शादी हो जानी चाहिए अस्तु इसी खयाल से जीतसिंह शादी के इंतजाम में जी जान से कोशिश कर रहे हैं और इस बात की खबर पाकर सभी प्रसन्न हो रहे हैं कि आज दोनों कुमार यहां आ जायेंगे और शीघ्र ही उनकी शादी भी हो जायेगी। महाराज की आज्ञानुसार जीतसिंह मुलाकात करने के लिए रणधीरसिंह के पास गये और हर तरह की जरूरी बातचीत करने के बाद इस बात का फैसला भी कर आये कि किशोरी के साथ ही साथ कामिनी का भी कन्यादान रणधीरसिंह ही करेंगे। साथ ही इसके रणधीरसिंह की यह बात भी जीतसिंह ने मंजूर कर ली कि इंद्रजीतसिंह और आनंदसिंह के आने के पहले किशोरी और कामिनी उनके (रणधीरसिंह के) खेमे में पहुंचा दी जायेंगी। आखिर ऐसा ही हुआ अर्थात किशोरी और कामिनी बड़ी हिफाजत के साथ रणधीरसिंह के खेमे में पहुंचा दी गर्ईं और बहुत से फौजी सिपाहियों के साथ पन्नालाल, रामनारायण, चुन्नीलाल और पंडित बद्रीनाथ ऐयार खास उनकी हिफाजत के लिए छोड़ दिए गए।

आज कुंअर इंद्रजीतसिंह और आनंदसिंह के आने की उम्मीद में लोग खुशी-खुशी तरह-तरह के चर्चे कर रहे हैं। आज ही के दिन आने के लिए दोनों कुमारों ने चिट्ठी लिखी थी इसलिए आज उनके दादा-दादी, बाप-मां, दोस्तों और मुहब्बतियों को उम्मीद हो रही है कि उनकी तरसती हुई आंखें ठंडी होंगी और जुदाई के सदमों से मुर्झाया हुआ दिल हरा होगा। अहलकार और खैरखाह लोग जरूरी कामों को भी छोड़कर तिलिस्मी इमारत में इकट्ठे हो रहे हैं। इसी तरह हर एक अदना और आला दोनों कुमारों के आने की उम्मीद में खुश हो रहा है। गरीबों और मोहताजों की खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं, उन्हें इस बात का पूरा विश्वास हो रहा है कि अब उनका दारिद्रय दूर हो जायगा!

दो पहर दिन ढलने के बाद नकाबपोश भी आकर हाजिर हो गए हैं, केवल वे ही नहीं बल्कि उनके साथ और भी कई नकाबपोश हैं, जिनके बारे में लोग तरह-तरह के चर्चे कर रहे हैं और साथ ही यह भी कह रहे हैं कि “जिस समय ये नकाबपोश लोग अपने चेहरों से नकाबें हटावेंगे उस समय जरूर कोई-न-कोई अनूठी घटना देखने-सुनने में आवेगी।”

नकाबपोशों की जुबानी यह तो मालूम हो ही चुका था कि दोनों कुमार उसी पत्थर वाले तिलिस्मी चबूतरे के अंदर से प्रकट होंगे जिस पर पत्थर का आदमी सोया हुआ है, इसलिए इस समय महाराज, राजा साहब और सलाहकार लोग उसी दालान में इकट्ठे हो रहे हैं और वह दालान भी सजा-सजाकर लोगों के बैठने लायक बना दिया गया है।

तीन पहर दिन बीत जाने पर चबूतरे के अंदर से कुछ विचित्र ही ढंग के बाजे की आवाज आने लगी जो कि भारी मगर सुरीली थी और जिसके सबब से लोगों का ध्यान उसी तरफ खिंचा। महाराज सुरेन्द्रसिंह, वीरेन्द्रसिंह, जीतसिंह, तेजसिंह, गोपालसिंह तथा दोनों नकाबपोश उठकर उस चबूतरे के पास गये। ये लोग बड़े गौर से उस चबूतरे की अवस्था पर ध्यान दिये रहे क्योंकि इस बात का पूरा गुमान था कि पहले की तरह आज भी उस चबूतरे का अगला हिस्सा किवाड़ के पल्ले की तरह खुलकर जमीन के साथ लग जायगा। आखिर ऐसा ही हुआ अर्थात् जिस तरह बलभद्रसिंह के आने और जाने के वक्त उस चबूतरे का हिस्सा खुल गया था उसी तरह इस समय भी वह किवाड़ के पल्ले की तरह धीरे-धीरे खुलकर जमीन के साथ लग गया और उसके अंदर से कुंअर इंद्रजीतसिंह तथा आनंदसिंह बाहर निकलकर महाराज सुरेन्द्रसिंह के पैरों पर गिर पड़े। उन्होंने बड़े प्रेम से उठाकर छाती से लगा लिया। इसके बाद दोनों कुमारों ने अपने पिता का चरण छुआ फिर जीतसिंह और तेजसिंह को प्रणाम करने के बाद राजा गोपालसिंह से मिले। इसके बाद बारी-बारी नकाबपोशों, ऐयारों, दोस्तों से भी मुलाकात की।

बंदोबस्त पहले से ही हो चुका था और इशारा भी बंधा हुआ था, अतएव जिस समय कुमार महाराज के चरणों पर गिरे हैं उसी समय फाटक पर से बाजे की आवाज आने लगी, जिससे बाहर वालों को भी मालूम हो गया कि कुंअर इंद्रजीतसिंह और आनंदसिंह आ गये।

इस समय की खुशी का हाल लिखना हमारी ताकत से बाहर है, हां इसका अंदाजा पाठकगण स्वयं कर सकते हैं कि जब दोनों कुमार मिलन के लिए औरतों के महल में अंदर गए तो खुशी का दरिया कितने जोश के साथ उमड़ा होगा। महल के अंदर दोनों कुमारों का इंतजार बनिस्बत बाहर के ज्यादा होगा यह सोचकर महाराज ने दोनों कुमारों को ज्यादे देर तक बाहर रोकना मुनासिब न समझकर शीघ्र ही महल में जाने की आज्ञा दी और दोनों कुमार भी खुशी-खुशी महल के अंदर जाकर सभों से मिले। उनकी मां और दादी की बढ़ती हुई खुशी का तो आज अंदाज करना बहुत ही कठिन है, जिन्होंने लड़कों की जुदाई तथा रंज और नाउम्मीदी के साथ ही साथ तरह-तरह की खबरों से पहुंची हुई चोटों को अपने नाजुक कलेजों पर सम्हालकर और देवताओं की मन्नतें मान-मानकर आज का दिन देखने के लिए अपनी नन्ही-सी जान को बचा रखा था। अगर उन्हें समय और नीति पर विशेष ध्यान न रहता तो आज घंटों तक अपने बच्चों को कलेजे से अलग करके बातचीत करने और महल के बाहर जाने का मौका न देतीं।

दोनों कुमार खुशी-खुशी सभों से मिले। एक-एक करके सभों से कुशल-मंगल पूछा, कमलिनी और लाडिली से भी चार आंखें हुईं मगर किशोरी और कामिनी की सूरत दिखाई न पड़ी, जिनके बारे में सुन चुके थे कि महल के अंदर पहुंच चुकी हैं। इस सबब से उनके दिल को जो कुछ तकलीफ थी उसका अंदाज औरों को तो नहीं मगर कुछ-कुछ कमलिनी और लाडिली को मिल गया और उन्होंने बात ही बात में इस भेद को खुलवाकर कुमारों की तसल्ली करवा दी।

थोड़ी देर तक दोनों भाई महल के अंदर रहे और इस बीच में बाहर से कई दफे तलबी का संदेश पहुंचा, अस्तु पुनः मिलने का वादा करके वहां से उठकर वे बाहर की तरफ रवाना हुए और उस आलीशान कमरे में पहुंचे जिसमें कई खास-खास आदमियों और आपस वालों के साथ महाराज सुरेन्द्रसिंह और वीरेन्द्रसिंह उनका इंतजार कर रहे थे। इस समय इस कमरे में यद्यपि राजा गोपालसिंह, नकाबपोश लोग, जीतसिंह, तेजसिंह, भूतनाथ और ऐयार लोग भी मौजूद थे मगर कोई आदमी ऐसा न था जिसके सामने भेद की बातें करने में किसी तरह का संकोच हो। दोनों कुमार इशारा पाकर अपने दादा साहब के बगल में बैठ गए और धीर-धीरे बातचीत होने लगी।

सुरेन्द्र - (दोनों कुमारों की तरफ देख के) भैरोसिंह और तारासिंह तुम्हारे पास गये हुए थे, उन दोनों को कहां छोड़ा?

इंद्रजीत - (मुस्कराते हुए) जी वे दोनों तो हम लोगों के आने के पहले ही से हुजूर में हाजिर हैं!

सुरेन्द्र - (ताज्जुब से चारों तरफ देख के) कहां?

महाराज के साथ ही साथ और लोगों ने भी ताज्जुब के साथ एक-दूसरे पर निगाह डाली।

इंद्रजीत - (दोनों सरदार नकाबपोशों की तरफ बताकर जिनके साथ और भी कई नकाबपोश थे) रामसिंह और लक्ष्मणसिंह का काम आज वे ही दोनों पूरा कर रहे हैं।

इतना सुनते ही दोनों नकाबपोशों ने अपने-अपने चेहरे पर से नकाब हटा दी और उनके बदले में भैरोसिंह तथा तारासिंह दिखाई देने लगे। इस जादू के से मामले को देखकर सभी की विचित्र अवस्था हो गई और सब ताज्जुब में आकर एक-दूसरे का मुंह देखने लगे। भूतनाथ और देवीसिंह की तो और ही अवस्था हो रही थी। बड़े जोरों के साथ उनका कलेजा उछलने लगा और वे कुल बातें उन्हें याद आ गर्ईं जो नकाबपोशों के मकान में जाकर देखी-सुनी थीं और वे दोनों ही ताज्जुब के साथ गौर करने लगे।

सुरेन्द्र - (दोनों कुमारों से) जब भैरोसिंह और तारासिंह तुम्हारे पास नहीं गये और यहां मौजूद थे तब भी तो रामसिंह और लक्ष्मणसिंह कई दफे आये थे, उस समय इस विचित्र पर्दे (नकाब) के अंदर कौन छिपा हुआ था?

इंद्रजीत - (और सब नकाबपोशों की तरफ बताकर) कई दफे इन लोगों में से बारी-बारी से समयानुसार और कई दफे स्वयं हम दोनों भाई इसी पोशाक और नकाब को पहिरकर हाजिर हुए थे।

कुंअर इंद्रजीतसिंह की इस बात ने इन लोगों को और भी ताज्जुब में डाल दिया और सब कोई हैरानी के साथ उनकी तरफ देखने लगे। और भूतनाथ और देवीसिंह की तो बात ही निराली थी, इनको तो विश्वास हो गया कि नकाबपोशों की टोह में जिस मकान के अंदर हम लोग गए थे उसके मालिक ये ही दोनों हैं, इन्हीं दोनों की मर्जी से हम लोग गिरफ्तार हुए थे, और इन्हीं दोनों के सामने पेश किए गए थे। देवीसिंह यद्यपि अपने दिल को बार-बार समझा-बुझाकर सम्हालते थे मगर इस बात का खयाल हो ही जाता था कि अपने ही लोगों ने मेरी बेइज्जती की और मेरे ही लड़के ने इस काम में शरीक होकर मेरे साथ दगा की। मगर देखना चाहिए, इन सब बातों का भेद सबब और नतीजा क्या खुलता है।

भूतनाथ इस सोच में घड़ी-घड़ी सिर झुका लेता था कि मेरे पुराने ऐब जिन्हें मैं बड़ी कोशिश से छिपा रहा था अब छिपे न रहे क्योंकि इन नकाबपोशों को मेरा रत्ती -रत्ती हाल मालूम है और दोनों कुमार इन सभों के मालिक और मुखिया हैं, अस्तु इनसे कोई बात छिपी न रह गई होगी। इसके अतिरिक्त मैं अपनी आंखों से देख चुका हूं कि मुझसे बदला लेने की नीयत रखने वाला मेरा दुश्मन उस विचित्र तस्वीर को लिए हुए इनके सामने हाजिर हुआ था और मेरा लड़का हरनामसिंह भी वहां मौजूद था। यद्यपि अब इस बात की आशा नहीं हो सकती कि यह दोनों कुमार मुझे जलील और बेआबरू करेंगे मगर फिर भी शर्मिंदगी मेरा पल्ला नहीं छोड़ती। इत्तिफाक की बात है कि जिस तरह मेरी स्त्री और लड़के ने इस मामले में शरीक होकर मुझे छकाया है उसी तरह देवीसिंह की स्त्री-लड़के ने उनके दिल में भी चुटकी ली है।

देवीसिंह और भूतनाथ की तरह हमारे और ऐयारों के दिल में भी करीब-करीब इसी ढंग की बातें पैदा हो रही थीं और इन सब भेदों को जानने के लिए वे बनिस्बत पहले के अब ज्यादे बेचैन हो रहे थे, तथा यही हाल हमारे महाराज गोपालसिंह वगैरह का भी था।

कुछ देर तक ताज्जुब के साथ सन्नाटा रहा और इसके बाद पुनः महाराज ने दोनों कुमारों की तरफ देखकर कहा –

सुरेन्द्र - ताज्जुब की बात है कि तुम दोनों भाई यहां आकर भी अपने को छिपाए रहे!!

इंद्रजीत - (हाथ जोड़कर) मैं यहां हाजिर होकर पहले ही अर्ज कर चुका था कि 'हम लोगों का भेद जानने के लिए उद्योग न किया जाय, हम लोग मौका पाकर स्वयं अपने को प्रकट कर देंगे' इसके अतिरिक्त तिलिस्मी नियमों के अनुसार तब तक हम दोनों भाई प्रकट नहीं हो सकते थे जब तक कि अपना काम पूरा करके इसी तिलिस्मी चबूतरे की राह से तिलिस्म के बाहर नहीं निकल आते। साथ ही इसके हम लोगों की यह भी इच्छा थी कि जब तक निश्चिंत होकर खुले तौर पर यहां न आ जायं तब तक कैदियों के मुकदमे का फैसला न होने पावे क्योंकि इस तिलिस्म के अंदर जाने के बाद हम लोगों को बहुत से नए भेद मालूम हुए हैं जो (नकाबपोशों की तरफ इशारा करके) इन लोगों से संबंध रखते हैं और जिनको आपसे अर्ज करना बहुत जरूरी था।

सुरेन्द्र - (मुस्कराते हुए और नकाबपोशों की तरफ देख के) अब तो इन लोगों को भी अपने चेहरों से नकाब उतार देना चाहिए, हम समझते हैं, इस समय इन लोगों का चेहरा साफ होगा।

कुंअर इंद्रजीतसिंह का इशारा पाकर उन नकाबपोशों ने भी अपने-अपने चेहरे से नकाब हटा दी और खड़े होकर अदब के साथ महाराज को सलाम किया। ये नकाबपोश गिनती में पांच थे और इन्हीं पांचों में इस समय वे दोनों सूरत भी दिखाई पड़ीं जो यहां दरबार में पहले दिखाई पड़ चुकी थीं या जिन्हें देखकर दारोगा और बेगम के छक्के छूट गए थे।

अब सभों का ध्यान उन पांचों नकाबपोशों की तरफ खिंच गया जिनका असल हाल जानने के लिए लोग पहले ही से बेचैन हो रहे थे क्योंकि इन्होंने कैदियों के मामले में कुछ विचित्र ढंग की कैफियत और उलझन पैदा कर दी थी। यद्यपि कह सकते हैं कि यहां पर इन पांचों को पहचानने वाला कोई न था मगर भूतनाथ और राजा गोपालसिंह बड़े गौर से उनकी तरफ देखकर अपने हाफजे (स्मरणशक्ति) पर जोर दे रहे थे और उम्मीद करते थे कि इन्हें हम पहचान लेंगे।

सुरेन्द्र - (गोपालसिंह की तरफ देख के) केवल हमीं लोग नहीं बल्कि हजारों आदमी इनका हाल जानने के लिए बेताब हो रहे हैं, अस्तु ऐसा करना चाहिए कि एक साथ ही इनका हाल मालूम हो जाय।

गोपाल - मेरी भी यही राय है।

एक नकाब - कैदियों के सामने ही हम लोगों का किस्सा सुना जाय तो ठीक हो क्योंकि ऐसा होने ही से महाराज का विचार पूरा होगा। इसके अतिरिक्त हम लोगों के किस्से में वही कैदी हामी भरेंगे और कई अधूरी बातों को पूरा करके महाराज का शक दूर करेंगे जिन्हें हम लोग नहीं जानते और जिनके लिए महाराज उत्सुक होंगे।

इंद्र - (सुरेन्द्रसिंह से) बेशक ऐसा ही है। यद्यपि हम दोनों भाई इन लोगों का किस्सा सुन चुके हैं मगर कई भेदों का पता नहीं लगा जिनके जाने बिना जी बेचैन हो रहा है और उनका मालूम होना कैदियों की इच्छा पर निर्भर है।

सुरेन्द्र - (कुछ सोचकर) खैर ऐसा ही किया जाएगा।

इसके बाद उन लोगों में दूसरे तरह की बातचीत होने लगी जिसके लिखने की कोई आवश्यकता नहीं जान पड़ती। इसके घंटे भर बाद दरबार बर्खास्त हुआ और सब कोई अपने स्थान पर चले गए।

कुंअर इंद्रजीतसिंह का दिल किशोरी को देखने के लिए बेताब हो रहा था। उन्हें विश्वास था कि यहां पहुंचकर उससे अच्छी तरह मुलाकात होगी और बहुत दिनों का अरमान भरा दिल उसकी सोहबत से तस्कीन पाकर पुनः उनके कब्जे में आ जाएगा मगर ऐसा नहीं हुआ अर्थात् कुमार के आने के पहले ही वह अपने नाना के डेरे में भेज दी गई और उनका अरमान भरा दिल उसी तरह तड़पता रह गया। यद्यपि उन्हें इस बात का भी विश्वास था कि अब उनकी शादी किशोरी के साथ बहुत जल्दी होने वाली है मगर फिर भी उनका मनचला दिल जिसे उनके कब्जे के बाहर भये मुद्दत हो चुकी थी इन चापलूसियों को कब मानता था! इसी तरह कमलिनी से भी मीठी-मीठी बातें करने के लिए वे कम बेताब न थे मगर बड़ों का लेहाज उन्हें इस बात की इजाजत नहीं देता था कि उससे एकांत में मुलाकात करें यद्यपि ऐसा करते तो कोई हर्ज की बात न थी मगर इसलिए कि उसके साथ भी शादी होने की उम्मीद थी शर्म और लेहाज के फेर में पड़े हुए थे, परंतु कमलिनी को इस बात का सोच-विचार कुछ भी न था। हम इसका सबब भी बयान नहीं कर सकते, हां इतना कहेंगे कि जिस कमरे में कुंअर इंद्रजीतसिंह का डेरा था उसी के पीछे वाले कमरे में कमलिनी का डेरा था और उस कमरे से कुंअर इंद्रजीतसिंह के कमरे में आने-जाने के लिए एक छोटा-सा दरवाजा भी था जो इस समय भीतर की तरफ से अर्थात् कमलिनी की तरफ से बंद था और कुमार को इस बात की कुछ भी खबर न थी।

रात पहर भर से ज्यादे जा चुकी थी। कुंअर इंद्रजीतसिंह अपने पलंग पर लेटे हुए किशोरी और कमलिनी के विषय में तरह-तरह की बातें सोच रहे थे। उनके पास कोई दूसरा आदमी न था और एक तरह का सन्नाटा छाया हुआ था। एकाएक पीछे वाले कमरे का (जिसमें कमलिनी का डेरा था) दरवाजा खुला और अंदर से एक लौंडी आती हुई दिखाई पड़ी।

कुमार ने चौंककर उसकी तरफ देखा और उसने हाथ जोड़कर अर्ज किया, “कमलिनीजी आपसे मिला चाहती हैं, आज्ञा हो तो स्वयं यहां आवें या आप ही वहां तक चलें।”

कुमार - वे कहां हैं?

लौंडी - (पिछले कमरे की तरफ बताकर) इसी कमरे में तो उनका डेरा है।

कुमार - (ताज्जुब से) इसी कमरे में! मुझे इस बात की कुछ भी खबर न थी। अच्छा मैं स्वयं चलता हूं, तू इस कमरे का दरवाजा बंद कर दे।

आज्ञा पाते ही लौंडी ने कुमार के कमरे का दरवाजा बंद कर दिया जिससे बाहर से कोई यकायक आ न जाय। इसके बाद इशारा पाकर लौंडी कमलिनी के कमरे की तरफ रवाना हुई और कुमार उसके पीछे-पीछे चले। चौखट के अंदर पैर रखते ही कुमार की निगाह कमलिनी पर पड़ी और वे भौंचक्के से होकर उसकी सूरत देखने लगे।

इस समय कमलिनी की सुंदरता बनिस्बत पहले के बहुत ही बढ़ी-चढ़ी देखने में आई। पहले जिन दिनों कुमार ने कमलिनी की सूरत देखी थी उन दिनों वह बिल्कुल उदासीन और मामूली ढंग पर रहा करती थी। मायारानी के झगड़े की बदौलत उसकी जान जोखिम में पड़ी हुई थी और इस कारण से उसके दिमाग को एक पल के लिए भी छुट्टी नहीं मिलती थी। इन्हीं सब कारणों से उसके शरीर और चेहरे की रौनक में भी बहुत बड़ा फर्क पड़ गया था तिस पर भी वह कुमार की सच्ची निगाह में ही दिखाई देती थी। फिर आज उसकी खुशी और खूबसूरती का क्या कहना है जबकि ईश्वर की कृपा से वह अपने तमाम दुश्मनों पर फतह पा चुकी है, तरद्दुदों के बोझ से हलकी हो चुकी है ओैर मनमानी उम्मीदों के साथ अपने को बनाने-संवारने का भी मुनासिब मौका उसे मिल गया है! यही सबब है कि इस समय वह रानियों की-सी पोशाक और सजावट में दिखाई देती है।

कमलिनी की इस समय की खूबसूरती ने कुमार पर बहुत बड़ा असर किया और बनिस्बत पहले के इस समय बहुत ज्यादे कुमार के दिल पर अपना अधिकार जमा लिया। कुमार को देखते ही कमलिनी ने हाथ जोड़कर प्रणाम किया। और कुमार ने आगे बढ़कर बड़े प्रेम से उसका हाथ पकड़कर पूछा, “कहो, अच्छी तो हो?'

“अब भी अच्छी न होऊंगी!” कहकर मुस्कराती हुई कमलिनी ने कुमार को ले जाकर एक ऊंची गद्दी पर बैठाया और आप भी उनके पास बैठकर यों बातचीत करने लगी।

कम - कहिए तिलिस्म के अंदर आपको किसी तरह की तकलीफ तो नहीं हुई!

इंद्र - ईश्वर की कृपा से हम लोग कुशलपूर्वक यहां तक चले आए और अब तुम्हें धन्यवाद देते हैं क्योंकि यह सब बातें तुम्हारी ही बदौलत नसीब हुई हैं। अगर तुम मदद न करतीं तो न मालूम हम लोगों की क्या दशा हुई होती! हमारे साथ तुमने जो कुछ उपकार किया है उसका बदला चुकाना मेरी सामर्थ्य के बाहर है। सिवाय इसके मैं क्या कह सकता हूं कि (अपनी छाती पर हाथ रख के) यह जान और शरीर तुम्हारा है।

कम - (मुस्कराकर) अब कृपा कर इन सब बातों को तो रहने दीजिए क्योंकि इस समय मैंने इसलिए आपको तकलीफ नहीं दी है कि अपनी बड़ाई सुनूं या आप पर अपना अधिकार जमाऊं।

इंद्र - अधिकार तो तुमने उसी दिन मुझ पर जमा लिया जिस दिन ऐयार के हाथ से मेरी जान बचाई और मुझसे तलवार की लड़ाई लड़कर यह दिखा दिया कि मैं तुमसे ताकत में कम नहीं हूं।

कम - (हंसकर) क्या खूब! मैं और आपका मुकाबला करूं!! आपने मुझे भी क्या कोई पहलवान समझ लिया है?

इंद्र - आखिर क्या बात थी जो उस दिन मैं तुमसे हार गया था।

कम - आपको उस बेहोशी की दवा ने कमजोर और खराब कर दिया था जो एक अनाड़ी ऐयार की बनाई हुई थी। उस समय केवल आपको चैतन्य करने के लिए मैं लड़ पड़ी थी नहीं तो कहां मैं और कहां आप!!

इंद्र - खैर ऐसा ही होगा मगर इसमें तो कोई शक नहीं कि तुमने मेरी जान बचाई, केवल उसी दफा नहीं बल्कि उसके बाद भी कई दफे।

कम - भया, भया, अब इन सब बातों को जाने दीजिए, मैं ऐसी बातें नहीं सुना चाहती। हां यह बतलाइए कि तिलिस्म के अंदर आपने क्या-क्या देखा और क्या-क्या किया?

इंद्र - मैं सब हाल तुमसे कहूंगा बल्कि उन नकाबपोशों को कैफियत भी तुमसे बयान करूंगा जो मुझे तिलिस्म के अंदर मिले और जिनका हाल अभी तक मैंने किसी से बयान नहीं किया, मगर तुम यह सब हाल अपनी जुबान से किसी से न कहना।

कम - बहुत खूब।

इसके बाद कुंअर इंद्रजीतसिंह ने अपना कुल हाल कमलिनी से बयान किया और कमलिनी ने भी अपना पिछला किस्सा और उसी के साथ-साथ भूतनाथ, नानक तथा तारा वगैरह का हाल बयान किया जो कुमार को मालूम न था, इसके बाद पुनः उन दोनों में यों बातचीत होने लगी –

इंद्र - आज तुम्हारी जुबानी बहुत-सी ऐसी बातें मालूम हुई हैं जिनके विषय में मैं कुछ भी नहीं जानता था।

कम - इस तरह आपकी जुबानी उन नकाबपोशों का हाल सुनकर मेरी अजीब हालत हो रही है, क्या करूं आपने मना कर दिया है कि किसी से इस बात का जिक्र न करना नहीं तो अपने सुयोग्य पति से उनके विषय में...।

इंद्र - (चौंककर) क्या तुम्हारी शादी हो गई?

कम - (कुमार के चेहरे का रंग उड़ा हुआ देख मुस्कराकर) मैं अपने उस तालाब वाले मकान में अर्ज कर चुकी थी कि मेरी शादी बहुत जल्द होने वाली है।

इंद्र - (लंबी सांस लेकर) हां मुझे याद है, मगर यह उम्मीद न थी कि वह इतनी जल्दी हो जायगी।

कम - तो क्या आप मुझे हमेशा कुंआरी ही देखना पसंद करते थे?

इंद्र - नहीं ऐसा तो नहीं है, मगर...।

कम - मगर क्या कहिए कहिए, रुके क्यों?

इंद्र - यही कि मुझसे पूछ तो लिया होता।

कम - क्या खूब! आपने क्या मुझसे पूछकर इंद्रानी के साथ शादी की थी जो मैं आपसे पूछ लेती।

इतना कहकर कमलिनी हंस पड़ी और कुमार ने शरमाकर सिर झुका लिया मगर इस समय कुमार के चेहरे से मालूम होता था कि उन्हें हद दर्जे का रंज है और कलेजे में बेहिसाब तकलीफ हो रही है।

कुमार - (कमलिनी के पास से कुछ खिसककर) मुझे विश्वास था कि जन्म भर तुमसे हंसने-बोलने का मौका मिलेगा।

कम - मेरे दिल में भी यही बात बैठी हुई थी और यही तै कर मैंने शादी की है कि आपसे कभी अलग होने की नौबत न आवे। मगर आप हट क्यों गये आइए-आइए जिस जगह बैठे थे बैठिए।

कुमार - नहीं-नहीं, पराई स्त्री के साथ एकांत में बैठना ही धर्म के विरुद्ध है न कि साथ सटकर, मगर आश्चर्य है कि तुम्हें इस बात का कुछ भी खयाल नहीं है! मुझे विश्वास था कि तुमसे कभी कोई काम धर्म के विरुद्ध न हो सकेगा।

कम - मुझमें आपने कौन-सी बात धर्म-विरुद्ध पाई?

कुमार - यही कि तुम इस तरह एकांत में बैठकर मुझसे बातें कर रही हो, इससे भी बढ़कर वह बात जो अभी तुमने अपनी जुबान से कबूल की है कि 'तुमसे कभी अलग न होऊंगी'। क्या यह धर्म-विरुद्ध नहीं है क्या तुम्हारा पति इस बात को जानकर भी तुम्हें पतिव्रता कहेगा?

कम - कहेगा और जरूर कहेगा, अगर न कहेगा तो इसमें उसकी भूल है। उसे निश्चय है और आप सच समझिए कि कमलिनी प्राण दे देना स्वीकार करेगी परंतु धर्म-विरुद्ध पथ पर चलना कदापि नहीं, आपको मेरी नीयत पर ध्यान देना चाहिए दिल्लगी के कामों पर नहीं, क्योंकि मैं ऐयारा भी हूं। यदि मेरा पति इस समय यहां आ जाय तो आपको मालूम हो जाय कि मुझ पर वह जरा भी शक नहीं करता और मेरा इस तरह बैठना उसे कुछ भी नहीं गढ़ाता।

कुमार - (कुछ सोचकर) ताज्जुब है!!

कम - अभी क्या, आपको और भी ताज्जुब होगा।

इतना कहकर कमलिनी ने कुमार की कलाई पकड़ ली और अपनी तरफ खींचकर कहा, “पहले आप अपनी जगह पर आकर बैठ जाइये तो मुझसे बात कीजिए।”

कुमार - नहीं-नहीं, कमलिनी, तुम्हें ऐसा उचित नहीं है। दुनिया में धर्म से बढ़कर और कोई वस्तु नहीं है एतएव तुम्हें भी धर्म पर ध्यान रखना चाहिए, अब तुम स्वतंत्र नहीं हो पराये की स्त्री हो।

कम - यह सच है परंतु मैं आपसे पूछती हूं कि यदि मेरी शादी आपके साथ होती तो क्या मैं आनंदसिंह से हंसने, बोलने या दिल्लगी करने लायक न रहती?

कुमार - बेशक उस हालत में तुम आनंद से हंस-बोल और दिल्लगी भी कर सकती थीं क्योंकि यह बात हम लोगों में लौकिक व्यवहार के ढंग पर प्रचलित है।

कम - बस तो मैं आपसे भी उसी तरह हंस-बोल सकती हूं। और ऐसा करने के लिए मेरे पति ने मुझे आज्ञा भी दे दी है, मैं उनका पत्र आपको दिखा सकती हूं इसलिए कि मेरा और आपका नाता ऐसा ही है, एक नहीं बल्कि तीन-तीन नाते हैं।

इंद्र - सो कैसे?

कम - सुनिए मैं कहती हूं। एक तो मैं किशोरी को अपनी बहिन समझती हूं, अतएव आप मेरे बहनोई हुए, कहिए हां।

कुमार - यह कोई बात नहीं है, क्योंकि अभी किशोरी की शादी मेरे साथ नहीं हुई है।

कम - खैर जाने दीजिए मैं दूसरा और तीसरा नाता बताती हूं। जिनके साथ मेरी शादी हुई है वे राजा गोपालसिंह के भाई हैं, इसके अतिरिक्त लक्ष्मीदेवी की मैं छोटी बहिन हूं अतएव आपकी साली भी हुई।

कुमार - (कुछ सोचकर) हां इस बात से तो मैं कायल हुआ मगर तुम्हारी नीयत में किसी तरह फर्क न आना चाहिए।

कम - इससे आप बेफिक्र रहिए, मैं अपना धर्म किसी तरह नहीं बिगाड़ सकती और न दुनिया में कोई ऐसा पैदा हुआ है जो मेरी नीयत बिगाड़ सके। आइए अपने ठिकाने पर बैठ जाइए।

लाचार कुंअर इंद्रजीतसिंह अपने ठिकाने पर बैठे और पुनः बातचीत करने लगे मगर उदास बहुत थे और यह बात उनके चेहरे से जाहिर होती थी।

यकायक कमलिनी ने मसखरेपन के साथ हंस दिया जिससे कुमार को खयाल हो गया कि इसने जो कुछ कहा सब झूठ और केवल दिल्लगी के लिए था मगर साथ ही इसके उनके दिल का खुटका साफ नहीं हुआ।

कम - अच्छा आप यह बताइये कि तिलिस्म की कैफियत देखने के लिए राजा साहब तिलिस्म के अंदर जायेंगे या नहीं?

कुमार - जरूर जायेंगे।

कम - कब?

कुमार - सो मैं ठीक नहीं कह सकता शायद कल या परसों ही जायं, कहते थे कि 'तिलिस्म के अंदर चलकर देखने का इरादा है।' इसके जवाब में भाई गोपालसिंह ने कहा कि 'जरूर और जल्द चलकर देखना चाहिए।'

कम - तो क्या हम लोगों को साथ ले जायेंगे?

कुमार - सो मैं कैसे कहूं तुम गोपाल भाई से कहो वह इसका बंदोबस्त जरूर कर देंगे, मुझे तो कुछ कहते शर्म मालूम होगी।

कम - सो तो ठीक है, अच्छा मैं कल उनसे कहूंगी।

कुमार - मगर तुम लोगों के साथ किशोरी भी अगर तिलिस्म के अंदर जाकर वहां की कैफियत न देखेगी तो मुझे इस बात का रंज जरूर होगा।

कम - बात तो वाजिब है मगर वह इस मकान में तभी आवेंगी जब उनकी शादी आपके साथ हो जायगी और इसीलिए वह अपने नाना के डेरे में भेज दी गई हैं। खैर तो आप इस मामले को तब तक के लिए टाल दीजिए जब तक आपकी शादी न हो जाय।

कुमार - मैं भी यही उचित समझता हूं अगर महाराज मान जायं तो।

कम - या आप हम लोगों को फिर दूसरी दफे ले जाइयेगा।

कुमार - हां यह भी हो सकता है। अबकी दफे का वहां जाना महाराज की इच्छा पर ही छोड़ देना चाहिए, वे जिसे चाहें ले जायं।

कम - बेशक ऐसा ही ठीक होगा। अब तिलिस्म के अंदर जाने में आपत्ति ही काहे की है, जब और जै दफे आप चाहेंगे हम लोगों को ले जायेंगे।

कुमार - नहीं सो बात ठीक नहीं, बहुत-सी जगह ऐसी हैं जहां सैकड़ों दफे जाने में भी कोई हर्ज नहीं है मगर बहुत-सी जगहें तिलिस्म के टूट जाने पर भी नाजुक हालत में बनी हुई हैं और जहां बार-बार जाना कठिन है तथापि मैं तुम लोगों को वहां की सैर जरूर कराऊंगा।

कम - मैं समझती हूं कि मेरे उस तालाब वाले तिलिस्मी मकान के नीचे भी कोई तिलिस्म जरूर है। उस खून से लिखी हुई तिलिस्मी किताब का मजमून पूरी तरह से मेरी समझ में नहीं आता था तथापि इस ढंग की बातों पर कुछ शक जरूर होता था।

कुमार - तुम्हारा खयाल बहुत ठीक है, हम दोनों भाइयों को खून से लिखी उस तिलिस्मी किताब के पढ़ने से बहुत ज्यादे हाल मालूम हुआ है, इसके अतिरिक्त मुझे तुम्हारा वह स्थान पसंद भी है और पहले भी मैं (जब तुम्हारे पास वहां था) यह विचार कर चुका था कि 'सब कामों से निश्चिंत होकर कुछ दिनों के लिए यहां जरूर डेरा जमाऊंगा' परंतु अब मेरा वह विचार कुछ काम नहीं दे सकता।

कम - सो क्यों?

कुमार - इसलिए कि अगर तुम्हारी बातें ठीक हैं तो अब वह स्थान तुम्हारे पति के अधिकार में होगा।

कम - (मुस्कराकर) तो क्या हर्ज है, मैं उनसे कहकर आपको दिला दूंगी।

कुमार - मैं किसी से भीख मांगना पसंद नहीं करता और न उनसे लड़कर वह स्थान छीन लेना ही मुझे मंजूर होगा। कमलिनी सच तो यों है कि तुमने मुझे धोखा दिया और बहुत बड़ा धोखा दिया। मुझे तुमसे यह उम्मीद न थी। (कुछ सोचकर) एक दफे तुम मुझसे फिर कह दो कि सचमुच तुम्हारी शादी हो गई है।

इसके जवाब में कमलिनी खिलखिलाकर हंस पड़ी और बोली, “हां हो गई।”

कुमार - मेरे सिर पर हाथ रखकर कसम खाओ।

कम - (कुमार के पैरों पर हाथ रखकर) आपसे मैं कसम खाकर कहती हूं कि मेरी शादी हो गई।

हम लिख नहीं सकते कि इस समय कुमार के दिल की कैसी बुरी हालत थी, रंज और अफसोस से उनका दिल बैठा जाता था और कमलिनी हंस-हंसकर चुटकियां लेती थी। बड़ी मुश्किल से कुमार थोड़ी देर और उसके पास बैठे। फिर उठकर लंबी सांस लेते हुए अपने कमरे में चले गए। रात भर उन्हें नींद न आई।

चंद्रकांता संतति

देवकीनन्दन खत्री
Chapters
चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 13 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 14 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 15 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 4 / भाग 16 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 15 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 16 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 17 / बयान 17 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 18 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 19 / बयान 15 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 5 / भाग 20 / बयान 15 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 21 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 13 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 22 / बयान 14 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 8 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 9 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 10 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 11 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 23 / बयान 12 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 1 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 2 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 3 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 4 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 5 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 6 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 7 चंद्रकांता संतति / खंड 6 / भाग 24 / बयान 8