दरवेश
अल्ला तुही तुहीरे । नबी तुही तुहीरे ॥ध्रु०॥
हमही मुंडा तुमही मुंडा मुंडा तेरा बाप । तेरे बापनें गद्धा चोदा हमकूं लागे पाप ॥ १ ॥
बगलम्यानें तबल बाजे घरमें नहीं कोई । खालीं हंडा चुवा बजवे । नाचन लागे डोई ॥ २ ॥
सब देवनमें ब्रह्मा बडा पढता चारी बेद । सरस्वतीसे हाल हुवा जब ब्रह्मा बेटी चोद ॥ ३ ॥
ढवाळा गिरी पर्वतम्याने शंभु करत तप । भील्लिणीकी गांठ पडी जब तप हुवा गप ॥ ४ ॥
पाराशरकी नुनी उठी ढिवरन लगी मिठी । जमुनामें संग भयो जब व्यास व्यास कर उठी ॥ ५ ॥
नारद बडा जगद भारी औरत मागे दान । साठ संवत्सरके लडके किये हो गये दानादान ॥ ६ ॥
गोकुळम्यानें राज करत है नाम रखा गिरिधारी । सोळा सहस्त्र लौंड्या भोगे होय ब्रह्मचारी ॥ ७ ॥
मेरे साहेब उंच माडी कपडा धुवा न जाय । हातका साबण गिर गया तो फिरकिर गोते खाय ॥ ८ ॥
कपडा फाटे चमडा तुटे हो गये सब सायास । एका जनार्दनका बंद दिलका दरवेश ॥ ९ ॥